हो गयी है भोर अब तू योग कर (कविता)
मन, शरीर, आत्मा को एक कर योग कर ।
अपने तन की बनावट पर तू ज़रा गौर कर,
अपने मन के दरवाजों पर तू थोड़ा जोश भर,
तन.मन की सब बीमारियों से खुद को तू निरोग कर,
कोरोना को हरा सके, इसलिए तू योग कर ।
हो गयी है भोर अब तू योग कर।
मन वचन और कर्म से तू ज़रा सहयोग कर,
कोई विशेष दिन नहीं हर दिन तू विशेष कर,
अपने इस जुनून पर तू थोड़ा रौव कर,
हो गयी है भोर अब तू योग कर।
कोरोना को हरा सके इसलिए तू योग कर ।
रचयिता- आंकाक्षा गुप्ता,
आगरा