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सिंहासन छोडो की जनता आती है

यह समय बहुत नाजुक है, कुछ भी कहना कुछ भी लिखने बहुत ज्यादा विचारणीय है, ऐसा क्यों लगता है, क्या जनता अपना विचार नहीं कह सकती क्या अपने विचार नहीं बता सकती है? देश लोकतंत्र है और इसमें लोगों को सत्ता में सबसे ऊँचा स्थान मिला है। फिर भी जब लोगों को देखता हूँ सुनता हूँ उनमे किसी अनजाने डर का भाव दीखता है
की कहीं उनकी कहीं बात कोई पकड़ ना लें कोई उन्हें सजा ना दिलवा दें। अगर देश शुरू से ही ऐसा था तो इसे सशक्त बनाना चाहिए और यदि ये शुरू से नहीं था तो इसे ऐसा क्यों बनाया जा रहा है। जनता को उनकी सोच के लिए स्वतंत्रता का सम्मान मिलना चाहिए. देश की जनता कुछ बुरा कुछ गलत क्यों कहेगी ऐसा विचार नहीं करना चाहिए।
समय हुआ जब ये शब्द जनता की शक्ति को बताते थे - सिंहासन छोडो की जनता आती है ये शब्द पूरे देश को एक कर देते थे अभिमानी शासक इस वाक्य से भय खाते थे। क्या ये वाक्य आज भी उतनी ताकत रखता है?

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