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बाणगंगा नदी अपने आखिरी अस्तित्व पर


राजस्थान का अधिकांश भाग रेगिस्तानी सुखा कठोर और पानी रहित है इसलिए प्राचीन समय से ही नदियों का यहां विशेष महत्त्व रहा है। राजस्थान की अरावली पर्वतमाला के पूर्व और पश्चिम में नदियों का प्रवाह है राजस्थान में महान जल विभाजक रेखा का कार्य अरावली पर्वतमाला द्वारा ही किया जाता है। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही राजस्थान की कई नदियां जिनमें बाणगंगा नदी प्रमुख है जो की राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश राज्य तक फैली हुई बाणगंगा नदी एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी कोई सहायक नदी नहीं है और इसका यमुना की जलधारा में विलय हो जाता है। बाणगंगा नदी का उद्गम बैराठ की पहाड़ियों से होता है इस नदी के किनारे बैराठ सभ्यता भी विकसित है। 380 किलोमीटर का लंबा सफर तय करते हुए यह नदी जयपुर दौसा भरतपुर और अंततः उत्तर प्रदेश में फतेहाबाद आगरा के समीप यमुना नदी में मिल जाती है प्रसिद्ध जमवारामगढ़ का बांध जयपुर के पास इसी नदी पर बना हुआ है। बरसात के दिनों में तबाही मचाने वाली तथा किसानों के लिए कामधेनु साबित होने वाली बाणगंगा नदी 1996 से 1997 तक पानी की आवक रहती थी जिसमें हजारों लोग गंगा समान पवित्र जल आचमन कर धन्य होते थे जहां मैड गांव में बाणगंगा तट पर हर साल मेला भरता था आज ये नदी प्रशासन की लापरवाही की मार झेल रही है। एक मान्यता के अनुसार अर्जुन ने अपनी बाण से इसकी धारा निकाली थी इसलिए इसे अर्जुन की गंगा भी कहते हैं आगे चलकर ताला गांव में यह त्रिवेणी संगम बनाती है इसलिए इसे ताला नदी भी कहा जाता है एक लंबा सफर तय करने के बाद दौसा जिले में माधोसागर बांध परियोजना का निर्माण करती है और भरतपुर में घना पक्षी राष्ट्रीय उद्यान में भूमिगत होकर नम भूमि का निर्माण करती हैं और अंततः यमुना नदी में जाकर विलय हो जाती चंबल नदी के बाद राजस्थान की बाणगंगा दूसरी नदी है जो अपना जल सीधा यमुना नदी में डालती है चूंकि इसका डेल्टा काफी कटा फटा है इसलिए इसे रुण्डित नदी भी कहते हैं। सिंचाई और पेयजल का एकमात्र सहारा बाणगंगा नदी पिछले 30 से 35 वर्षों से पानी रहित है 1996 से पानी की आवक नहीं होने से जलस्तर पर बुरा प्रभाव पड़ा है 20 से 120 हाथ गहराई के कुएं सूख गए और 40 फीट से 500 फीट गहराई तक लगे डीपवोर भी पानी नहीं ला पा रहे हैं। बाणगंगा नदी का महत्व बहुत ज्यादा है इस ने रामगढ़ बांध को हमेशा भरा रखा भरतपुर घना पक्षी विहार के पक्षियों की प्यास बुझाई मोती झील का निर्माण किया माधौसागर परियोजना का हिस्सा बनी और हमेशा लोगों की प्यास बुझाती रही जिससे हजारों बीघा भूमि सिंचित होती रही और 125 गांव के बांध तालाब पोखर भरे जाते रहे स्थानीय लोग स्नान व पेयजल के लिए इस नदी पर निर्भर रहते थे वही मांगलिक कार्यक्रम के दौरान लोग गंगा पूजन के लिए यहां आते थे साल के 12 महीने बहने वाली ये नदी आज वर्तमान में अपने अस्तित्व के लिए जुझ रही है। परंतु आज सरकार की लापरवाही और बढ़ते अतिक्रमण ने बाणगंगा के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया।।

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