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बाहरी पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए स्थानीय छोटे कारोबारियों के रोजगार में अड़ंगा, जिले के सारंग, अजयगढ़ व पांडवन आदि मेलों में प्रतिबंध से छोटे व्यापारियों की उम्मीदों पर फिरा पानी


पन्ना। विगत कुछ समय से पन्ना जिले के छोटे व्यापारी, मजदूर, बेबस और लाचार हो चुके हैं, फरियाद सुनने या आवाज उठाने वाला कोई सामने नहीं आ रहा, लगभग 6 माह चले कोरोना लॉक डाउन के दौरान आर्थिक रूप से पूरी तरह से टूट चुके छोटे व्यापारी, फेरीवाले और फुटपाथी मकर संक्रांति के अवसर पर जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में लगभग 1 माह तक चलने वाले मेलों से आर्थिक क्षति पूर्ति की उम्मीद लगाए बैठे थे, कोरोना के नाम पर मेलों पर प्रतिबंध लगाकर प्रशासन ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया, वहीं दूसरी ओर पन्ना शहर में बाहरी पूंजीपतियों के ट्रेड फेयर, प्रदर्शनी और बड़ी-बड़ी सालों को अनुमति देकर शहर के छोटे दुकानदारों की दुकानदारी पूरी तरह से चौपट कर दी गई है।

ठंड के सीजन में जहां नगर के कपड़ा व्यापारी और फेरीवाले अच्छी आमदनी कर लेते थे वह दिन भर अपने प्रतिष्ठान में हाथ मलते देखे जा रहे हैं, और वहीं बाहरी मेला संचालकों के हाथों में नोट नहीं समा रहे हैं, इसी प्रकार शासन प्रशासन द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में हजारों की भीड़ इकट्ठा की जा रही है और धार्मिक आस्था एवं छोटे दुकानदारों की आमदनी से जुड़े मेलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि क्या कोरोनावायरस छोटे व्यापारियों पर ही आक्रमण करता है, पूंजीपतियों के व्यापार मेलों शासन प्रशासन द्वारा आयोजित कार्यक्रमों पर इसका असर नहीं पड़ता क्या? इन सवालों का जवाब देने के लिए न तो अधिकारी तैयार हैं और न ही जनप्रतिनिधि।

प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम से जिले भर के छोटे व्यापारी जो पहले से ही आर्थिक रूप से परेशान थे अब मानसिक रूप से भी परेशान हो चुके हैं। आपको बता दें कि जिले के सैकड़ों किसान मेलों में बेचने के लिए भारी मात्रा में गन्ना उगाते थे और इस बार भी उन्होंने गन्ना उगाया था ताकि मेले में बेचकर अपना आर्थिक संकट दूर करेंगे, इसी प्रकार लाई के लड्डू, घड़िया घुल्ला, मूंगफली, गुड़, चाट-फुल्की, नारियल-लाई-भोग, पूजन सामग्री आदि विक्रेता भी मेले में लगाई गई रोक से काफी परेशान हैं। पर इनका दर्द समझने वाला कोई नहीं है।

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