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आज बैल पोला के दूसरे दिन तान्हा पोल मनाया जा रहा हैं इस दिन महाराष्ट्र की राजधानी नागपुर में मारबत उत्सव की धूम होती है।

नागपुर: आज बैल पोला के दूसरे दिन तान्हा पोल मनाया जा रहा हैं इस दिन महाराष्ट्र की राजधानी नागपुर में मारबत उत्सव की धूम होती है। जिसमें मारबत और बडग्या निकालते हैं और लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर इस आयोजन को पूरा करते है। पोला के दूसरे दिन आज मारबत का जुलूस निकालने की परंपरा कई सालों से चली आ रही हैं जो हर साल इस दिन निभाई जाती है। मारबत और बडग्या को बुराई के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं इस वजह से इस दिन इस दिन इस उत्सव को मनाया जाता है। इस परंपरा को चलाने के लिए मारबत का निर्माण करनेवाले कारागीरों की पीढ़ियां अब भी काम कर रही है। यह परंपरा काली और पीली मारबत बनाकर आज भी चलाई जा रही है।

काली और पीली मारबत की जाती है तैयार
यहां पर शहर में तान्हा पोला के दिन मारबत फेस्टिवल मनाने के लिए काली और पीली मारबत बनाई जाती हैं, जो परंपरा कई बरसों से प्रचलित है। वहीं पर दोनों मारबतों का निर्माण बुराई का प्रतीक के रूप में किया गया था। जयवंत तकितकर ने बताया कि पीली मारबत के निर्माण की शुरुआत १८८५ से की गई थी। इसे बनाने का उद्देश्य उस शहर में फैल रही बीमारियों से मुक्ति पाना था। बताते हैं कि, बताया कि उस समय शहर में बीमारियों का दौर सा चल पड़ा था। तब लोगों में एक धारणा बन गई थी कि मारबत का निर्माण करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और इसी के तहत लोगों ने इसका निर्माण शुरू किया। इसके अलावा काली मारबत का भी इतिहास बहुत पुराना है। इसका निर्माण पिछले १३१ वर्षो से किया जा रहा है। बताया जाता है कि १८८१ में नागपुर के भोसले राजघराने की बकाबाई नामक महिला ने विद्रोह कर अंग्रेजों से जा मिली थी, इसके बाद भोसले घराने पर बुरे दिन आ गए थे, इसी बात के विरोध में काली मारबत का जुलूस निकालने की परंपरा चली आ रही है।
शहर से बाहर ले जाकर जलाते हैं
आज के दिन मारबत को तैयार करके जुलूस की तरह निकाला जाता हैं इसके बाद शहर से बाहर ले जाकर जलाने की परंपरा होती हैं। कहते हैं ऐसा करने से सारी बुराइयां, बीमारियां, कुरीतियां भी खत्म हो जाती है। कहा जाता हैं कि, काली मारबत को महाभारत काल में रावण की बहन पुतना राक्षसी का रूप दिया गया है। श्रीकृष्ण के हाथों मारे जाने के बाद गोकुलवासियों ने काली मारबत को गांव के बाहर ले जाकर जला दिया था। जिससे गांव की सभी बुराइयां व कुप्रथाएं बाहर चली जाएं, तभी से काली मारबत का निर्माण किया जा रहा है।

बच्चे करते है बडग्या तैयार
मारबत की परंपरा तो पुरानी है लेकिन कई वर्षो से बच्चों द्वारा बडग्या का निर्माण किया जाता है, कहा जाए तो शहर में बडग्या निर्माण की परंपरा बच्चों ने शुरू की है। कागज, पेड़ की टहनियों और अपने घरों का कचरा आदि की सहायता से बच्चे बडग्या का निर्माण करते थे, उन्हीं बच्चों से प्रेरणा लेकर बड़े लोगों को भी अपनी भावनाओं और गुस्से को व्यक्त करने के लिए बडग्या के रूप में एक सशक्त माध्यम मिल गया। शहर भर में घुमाने के बाद बडग्या का दहन कर देते हैं। बता दें कि, मारबत को तैयार करने के लिए शहर के कई पुराने कारीगर आज भी इसे तैयार कर रहे है और इसके महत्व को बताते है।

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