पति पत्नी विवाद में कोर्ट का रोल
बहुत से आरोप ऐसे होते हैं जो आपसी रंजिश के तहत लगा दिए जाते हैं जैसे की जमीन संबंधित विवाद, संपत्ति, पैसे के लेने देन, तलाक संबंधित वाद आदि ऐसे बहुत से सिविल मामले होते हैं जो व्यक्ति को परेशान करने के उद्देश्य से कोई भी व्यक्ति किसी भी पक्षकार पर जबर्दस्ती अधिरोपित कर देता है।लेकिन न्यायालय में न्याय सही किया जाता है क्योंकि न्यायालय सबूतों, एवं गवाहों और जांचों के आधार पर किया जाता है ऐसे में कोई पक्षकार किसी व्यक्ति पर झूठा एवं तंग करने वाला वाद लगा देता है और कोर्ट में यह बात भी साबित हो जाती है तब व्यथित पक्षकार के नुकसान की भरपाई न्यायालय किस कानून के अंतर्गत करेगा जानिए।सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 35(क) की परिभाषा न्यायालय मिथ्या या तंग करने वाले दावों या प्रतिरक्षाओ के लिए प्रतिकारात्मक खर्च प्रभावित व्यक्ति को प्रदान करवा सकती है,कितने प्रतिकारात्मक खर्चे प्रदान करवाना है प्रभावित पक्षकार को यह न्यायालय के विवेकाधिकार पर है ।वेंकट स्वामी बनाम लक्ष्मी नारायण मालमे में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि प्रभावित पक्षकार को प्रतिकर(अनुदान) खर्च प्रदान किया जाना चाहिए।