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जैन महापर्व संवत्सरी पर आप सभी से हाथ जोड़ कर क्षमायाचना

"**क्षमा वीरस्य भूषणम,
मिच्छामि दुक्कडम्** ||"

आत्मशुद्धि, अहिंसा और संयम का अद्वितीय पर्व **पर्युषण** हमें जीवन में सच्चाई, परोपकार और सम्यक् दृष्टि की ओर अग्रसर होने का मार्ग दिखाता है। यह पर्व सिर्फ उपवास और तपस्या का ही नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध कर, करुणा, प्रेम, और दया के साथ जीने की प्रेरणा देता है।

आप सभी को इस पवित्र **संवत्सरी (पर्युषण) महापर्व** की हार्दिक शुभकामनाएँ। यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने जीवन में दूसरों के प्रति करुणा, सहानुभूति और क्षमा का भाव रखें।

यदि मेरे मन, वचन, या काया से जाने-अनजाने में किसी का दिल दुखा हो, किसी को कष्ट पहुँचा हो, तो इस पावन अवसर पर मैं आपसे पूरे दिल से क्षमा माँगता/माँगती हूँ। **"क्षमायाचना"** का यह भाव हमें अपने जीवन को एक नई दिशा देता है, जिसमें संथारा और समाधि जैसी परंपराओं का विशेष महत्व है, जो जीवन के अंतिम क्षणों में शांति और संतोष की प्राप्ति का प्रतीक हैं।

संथारा की साधना भी यही सिखाती है कि हमें अपने जीवन को संतुलित और सुकूनभरा बनाते हुए अंत तक अहिंसा, तप और संयम के मार्ग पर चलते रहना चाहिए। इस महापर्व पर, हम न केवल आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं, बल्कि पूरे विश्व में शांति, प्रेम, और सद्भाव का संदेश भी फैलाते हैं।

**पर्युषण महापर्व** के इस शुभ अवसर पर, मैं मन, वचन, काया से पूर्ण समभाव रखते हुए आपसे क्षमा याचना करता/करती हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें। 🙏🏼🙏🏼
**मिच्छामि दुक्कडम्...**

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