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*आदिवासी बहुल अंचल में रूद्राक्ष महाअभिषेक का हुआ भव्य समापन* *मेघनगर* श्री रूद्राक्ष महाअभिषेक आयोजन समिति और धर्म जागरण समन्वय के तत्वावधान में 2 लाख रूद्राक्षों का महाअभिषेक किया गया।

*आदिवासी बहुल अंचल में रूद्राक्ष महाअभिषेक का हुआ भव्य समापन*
*मेघनगर* श्री रूद्राक्ष महाअभिषेक आयोजन समिति और धर्म जागरण समन्वय के तत्वावधान में 2 लाख रूद्राक्षों का महाअभिषेक किया गया। इस दौरान प्रत्येक दिन भव्य अभिषेक में 250 जोड़े विधि विधान के साथ अभिषेक किया। वहीं आयोजन को भव्य रूप प्रदान करने के लिए विशाल भजन संध्या, शिवजी के रूद्र अवतार पर प्रवचन व भारतमाता की आरती के आयोजन भी किए गए।
1200 जोड़ों का हुआ पंजीयन हुआ और कुल 1060 जोड़े इस महाआयोजन में शामिल हुए।
इस अवसर पर 1008 महामंडलेश्वर सुरेशानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में पांच दिवसीय इस भव्य आयोजन में 24 घंटे ऊं नम: शिवाय का जाप हुआ। जिसके लिए पीपलखूंटा धाम से पंडित बुलाए गए थे।
सर्वप्रथम मंच पर उपस्थित साधु संतों द्वार रुद्राक्ष से बने भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग और भारतमाता की तस्वीर पर दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। भारतीय परंपरा के अनुसार उनका उनका स्वागत कार्यक्रम किया गया इसके पश्चात कार्यक्रम की शुरुआत कीगई। कार्यक्रम में सर्वप्रथम स्वागत भाषण परम पूज्य स्व. खूमसिंह जी महाराज के सुपुत्र कमल जी महाराज द्वारा दिया गया उन्होंने धर्मांतरण को लेकर और घर वापसी को लेकर समाज के बीच अपना विषय रखा। इसके बाद आदिवासी समाज के पटेल भाई मेंगजी अमलियार द्वारा वर्तमान समय में आदिवासी समाज को तोड़ने वाले ताकतों को लेकर और समाज में विधर्मी द्वारा फैलाई जा रहा है गलत मैसेज को लेकर समाज को जनजागरण करने के आव्हान करते हुए आदिवासी समाज को महर्षि वाल्मीकि, एकलव्य भील, माता शबरी, केवट के आदर्श पद चिन्हों पर चलने के लिए प्रेरित किया। तो अखिल भारतीय सह प्रमुख अरुण जी भाईसाहब ने वर्तमान समय में समझ में फैल रही कृतियां जैसे वैलेंटाइन डे बर्थडे केक पर अपने विचार रखते हुए भारतीय संस्कृति और भारत की शिक्षा पद्धति पर प्रकाश डालते हुए अपने विचार व्यक्त किया विश्व की सबसे प्राचीन शिक्षा पद्धति भारत की रही है तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय में से एक है नालंदा विश्वविद्यालय में 37 प्रकार की पढ़ाई होती थी परंतु उन्हें भी धर्मियों द्वारा जलने के बाद में कई वर्षों तक जलता रहा और वहां पर उपस्थित कहीं ग्रंथ जलकर नष्ट हो गए। शून्य का आविष्कार भी भारत ने दिया कि हम सबके लिए गर्व की बात है ज्ञान विज्ञान का समृद्ध भारत रहा है। आज विश्व के सभी देशों में भारतीय संस्कृति का ज्ञान हमें मिलता है हम महाराणा प्रताप के वंशज और संतान है। हमें अपने धर्म के प्रति अटूट विश्वास और आस्था होनी चाहिए और इसका उदाहरण गुरु गोविंद के छोटे-छोटे बच्चों का हम सबको बहुत ही सरल तरीके से दिया गया।
*यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः* अर्थात् जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
वही आदिवासी संत परम पूज्य कानू जी महाराज महाराज ने जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है हम इस मातृभूमि के बेटे हैं हम माता शबरी, वाल्मा भील,एकलव्य भील, हम सब एक ही है इस भाव को लिखो हमको समझ में हमेशा काम करना है और करते रहना है। हम सब हिंदू हिंदू भाई-भाई इस विचार को लेकर हमें एकजुट होकर समाज हित में कार्य करना है। तो वही महामंडलेश्वर संत श्री सुरेश आनंद जी महाराज ने कहा रुद्राक्ष पर अपना विषय रखते हुए वैदिक संस्कृति आज फिर से पुनः पुष्पित हो रही है आज इतनी बड़ी संख्या में जनजाति बाहुल इलाके में इतना बड़ा आयोजन हुआ यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा कार्यक्रम और आयोजन में मेरी आंखों से देख रहा हूं। यहां चल रहा यह राष्ट्र धर्म का कार्य एक अलौकिक कार्य है हम भगवान शिव जी के वंशज और अनुयाई है। वही राजस्थान से पधारे गौ सेवक संघ श्री रघुवर दास जी महाराज ने विश्व का सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म है किसी में इतनी कोई ताकत नहीं है कि सनातन को कोई समाप्त कर पाएगा सनातन को खत्म करने वाले स्वयं खत्म हो गए हैं धन्य है भारत की भूमि जहां जल, अग्नि, वायु, धरती, आकाश की पूजा होती है धन्य हम सब हम गाय को भी माता मानते हैं। आदिवासी समाज सनातन संस्कृति की नीव है दुनिया की कोई ताकत नहीं की आदिवासी को सनातन से अलग कर सकता है राम ने सबसे पहले राजा बनने से पहले वनवास जाना हुआ और आदिवासी भाइयों के बीच में वहां रहकर अपना पूरा जीवन यापन किया। जब वह बन गए तब वहां की मिट्टी लेकर गए और वहां की मिट्टी की पूजा प्रतिदिन करते थे हम भारत के संतान है इस मिट्टी को अपनी मां मानते हैं इस भारतमाता को हम राष्ट्र प्रथम के भाव से हम उसे मानते हैं। हमारी संस्कृति को मिटाने वाले ऑप्शन धीरे-धीरे मिट्टी रहे हैं।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता संत श्री दयाराम दास जी महाराज ने अपनी ओजस्वी वाणी में कहा कि विश्व को सद्भाव का मार्ग दिखाने वाला सबसे प्राचीन धर्म वह है सनातन धर्म वह सदैव विश्व कल्याण के लिए अपना कार्य करता है वह किसी एक धर्म के लिए नहीं कार्य कर रहा है हमेशा हर जीव जंतु प्राणी वर्ग के लिए कार्य कर रहा है यही सनातन धर्म है। हमारे भारत देश में तीर्थ संस्कृति थी हमारी महानता और अलौकिक है भारत में हमारी संस्कृति को तोड़ने की कई ताकत थी कार्य कर रही है लेकिन वह हमारे सनातन को नहीं तोड़ सकती है परम पूज्य दया रामदेव जी महाराज ने गाय माता को हर घर में पालने का आवाहन करते हुए कहा कि गाय माता ही हमारी मां है और उन्होंने मातृभाषा में अपने बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए विशेष आग्रह किया गया। मातृभाषा ही हमारे संस्कार है हमारे संस्कृति है हमारी सभ्यता है और हमारे रीति रिवाज है हमें अंग्रेजी भी सीखना है परंतु अंग्रेजी से पहले हमारी मातृभाषा पर हमें अभियान होना चाहिए भारत में हिंदू धर्म मानवता का पाठ पढ़ाते हैं कार्यक्रम के अंत में विशाल भंडारा आयोजित हुआ एवं इस समय धर्म जागरण के समस्त स्वयंसेवक बंधु ने अपना तन मन धन से सहयोग दिया।

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