
आज भी मूलभूत ज़रूरतों के लिये तरसते दिल्ली के गाँव।
आज भी मूलभूत ज़रूरतों के लिये तरसते दिल्ली के गाँव। दिल्ली देहात की सुध लेने वाला कोई नहीं।कौन करेगा देहात का विकास?
दिल्ली की जान आज भी दिल्ली के गाँव में बस्ती है। फिर भी उपेक्षा का शिकार है दिल्ली देहात। एक जमाना था जब गाँव अपनी हरियाली, शुद्ध हवा और सुंदरता के लिए जाने जाते थे, शहर के लोग बड़े चाव से कहते थे की हमे गाँव देखना है, आपके गाँव में चलना है, गाँव में कुछ दिन रहना है लेकिन जमाने की रफ़्तार और तेज़ी से हो रहे उधोगीकरण और शहरीकरण के चलते गाँव कही बहुत पीछे छूट गये।बहुत से गाँव इस हालत तक पहुँच गये है की आज के बच्चों को उनके नाम तक मालूम नहीं है। शासन, प्रशासन की अनदेखी कहे या राजनीतिग इच्छा शक्ति कि उन्हें गाँव दिखने बंध हो गए । आज हालात यहाँ तक आ गये है की गाँव के लोगो को देख लोग हीन भावना गर्षित होने लगे है, गाँव में जो भी लोग थोड़ा तरक्की करते है तेज़ी से गाँव छोड़ रहे है ।मूलभूत सुविदाओ का आभाव और गाँव व गाँव के लोगो के प्रति नकारात्मक सोच इसका एक बड़ा कारण है। आज़ादी के बाद से कितनी ही सरकार आई और गई लेकिन गाँव देहात की समस्याएँ आज भी जस की तस मुँहबाये खड़ी है। साहबसिंह वर्मा जी के कार्यकाल को छोड़ दिया जाये तो दिल्ली देहात हमेसा उपेक्षा का शिकार रहा है। फिर चाहे लंबे समय तक रही शीला दीक्षित जी की सरकार हो या केजरीवाल जी की सरकार हो, देहात को हमेशा नज़रअंदाज़ किया गया । गाँव की गलियाँ हो, सड़के हो, सामुदाईक भवन हो या चौपाल हो सब ज़र ज़र हालत में है।
बच्चों के खेल के मेदान ओर बुज़ुर्गों के घूमने के लिए पार्क जैसी सुविधायें , महिलाओ और बच्चों के कल्याण की बात तो आज भी बहुत दूर की कोड़ी है, अच्छे स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव, बड़े हस्पतालों का ना होना, सरकारी स्कूलों की कम संख्या और उन्मे खेल कूद की जगह ना होना भी चिंता का विषय है, पिछले कई बरसों से गाँव के लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं, कई गाँव के तालाबो का कोई अता-पता नहीं हैं, वन क्षेत्र का कोई पता नहीं हैं, ग्राम-सभा की जमीनो का अतिक्रमण किसी से छुपा नहीं। दिल्ली के गाँव शुद्ध हवा, हरियाली, लहलहाती फ़सलो की भिनी भीनी ख़ुशबू और सुंदरता को जाने किसकी नज़र लगी कि गाँव आज स्लम बनकर रह गये। ना गाँव की सुध ना गाँव वालों की सुनवाई। दिल्ली के किसानों की बात करे तो इनके पास कहने को तो ज़मीन है लेकिन उसका इस्तेमाल सिर्फ़ जंजाल के अलावा कुछ नहीं । ट्यूबल के लिये और उसकी बिजली के लिए आवेदन करे तो सरकार कहती है के दिल्ली को कर्षि का दर्जा नहीं है इसलिये औद्योगिक मीटर लगेगा। जब अपनी ही ज़मीन पर अपनी फ़सलो को स्टोर करने के लिए कोई कमरा भी बनाना चाहें तो सरकार कहती है कि कर्षि भूमि है आप इस पर कुछ बना नहीं सकते , फिर इस ज़मीन का किसान क्या उपयोग करे।दिल्ली के ग़रीबो को घर कब मिलेगा । लंबे समय तक लम्भित म्यूटेशन ना होने का दर्द कौन भूल सकता है कि जब कोई अपनी ही ज़मीन का मालिकाना हक़ ना ले सके, लबे संगर्ष के बाद वर्तमान उपराज्यपाल जी की तरफ से दो मांगे मानी गई है, लंबे समय से बंद पड़े म्यूटेशन की प्रक्रिया को बहाल कर दिया गया और गांवों में बिजली मीटर लगवाने के लिए तरह तरह के दस्तावेज देने की बजाए प्रक्रिया को सरल कर दिया गया है। दिल्ली सरकार जो नहीं कर पाई, उम्मीद है की केंद्र सरकार उसका स्वयं संज्ञान लेगी और गाँव की समस्याओं का समाधान जल्द होगा। धन्यवाद है सभी भाजपा सांसदो एव उपराज्यपाल साहब का की उन्होंने गाँव की इस समस्या को पर्मुखता से लिया और इस बड़ी समस्या का समाधान हो पाया । दिल्ली के हर गाव में विभिन्न जाति एव धर्मों के लोग सौहार्दपूर्ण भाव से रहते है और इन सबकी अपनी अपनी मिलीज़ुली समस्या है लेकिन समाधान कुछ नहीं क्योकि दिल्ली देहात की सुध लेने वाला कोई नहीं। Anjali Rana Narela vidhan Shaba Delhi