
ग़ज़ल - जबाब मुस्लिम प्रलाप का...............
है जबाब मेरा.........मुस्लिम के उस बेशर्म प्रलाप का |
जो कहते हैं........ये हिंदोस्तां नहीं किसी के बाप का ||
अगर हिंदुओं के ही संग में....मुस्लिम को भी रहना था,
तो ये देश तोड़ने का क्या? मक़सद था अभिशाप का ||
बँटवारा करके हिस्सा जब....तुमने अपना ले ही लिया,
तो फिर शेष बचा भारत तो.......है हिन्दू के बाप का ||
अपने हिस्से में तो तुमको.........दूजा कोई सहन नहीं,
कैसे?कोई यकीं करे फिर मुस्लिम क्रिया–कलाप का ||
नाम धर्म का लेकर....भारत को कर दिया हलाल जब ,
क्यों तुम सारे रहे इधर...?..यह बड़ा जाल है पाप का ||
जो हिन्दू भाई – चारे के...........धोखे में रह गये उधर,
उनको तुमने काट दिया है.......ख़ंज़र ले चुपचाप का ||
है षड़यंत्र तुम्हारा जारी........फिर तुम तोड़ो भारत को,
इसीलिये जन संख्या वृद्धि.....मुख्य लक्ष्य है आप का ||
तुम विदेश से भी मुस्लिम को....भारत लाओ चाह है ये,
जिससे दिखा सको तुम शक्ति संख्या बल के ताप का ||
जिस दिन बहुमत हुआ तुम्हारा,उस दिन होगा खेल ये,
या इस्लाम क़बूल करो.......या गाओ राग विलाप का ||
जिसने तुमको शरण दिया....खा गये उन्हीं का देश तुम,
नहीं अर्थ इस्लाम में कोई........मानवता के जाप का ||
रचनाकार – अभय दीपराज
संपर्क – 9893101237