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नए वर्ष में नई पहल हो। कठिन ज़िंदगी और सरल हो।।अनसुलझी जो रही पहेली। अब शायद उसका भी हल हो।।जो चलता है वक्त देखकर। आगे जाकर वही सफल हो।। नए वर्ष का उगता सूरज। सबके लिए सुनहरा पल हो।। समय हमारा साथ सदा दे। कुछ ऐसी आगे हलचल हो।। सुख के चौक पुरें हर द्वारे सुखमय आँगन का हर पल हो।।

रिश्ते का आधार क्या होता हैं?क्या होता नींव रिश्तों का? किसी का अंहकार कम होता ही नहीं हैं… हर कोई यही सोच रहा होता हैं कि रिश्ते की नींव मैं हूँ मेरी वजह से रिश्ता चल रहा हैं निभ रहा हैं…पर क्या ये सही हैं? क्या एक की गलती या एक की कोशिश से रिश्ते बचते या बिगड़ते हैं? मेरे ख्याल से हम किसी एक को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते ॥ ताली हमेशा दो हाथ से बजती हैं ठीक उसी प्रकार कोई भी रिश्ता हो दोनों का समान सहयोग रहता हैं बनाने और बिगाड़ने में…. जिंदगी में कोई एसा ज़रूर होना चाहिए जो हमारे लिये पुरी कोशिश करें हमारे ही रिश्ते में जान भरने के लिये…..जो बार बार महसूस करवाये कि हम इस रिश्ते इस इंसान के बीना अधूरे हैं। रिश्ते की ख़ूबसूरती मैं नहीं हम होता हैं प्रेम ,इज़्ज़त,विश्वास और सहयोग से वो जीवन भर साथ रहता है….प्रेम में नोकझोंक होना चाहिये पर सामने वाले की भावनाओं को ठेस पहुँचा कर नहीं. कोई प्यार करता है तो तुमसे करता हैं तुम्हारी बातों से तुम्हारी मुस्कान से करता हैं उसका ख्याल होना चाहिए ।

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