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महज़ दहेज की माँग धारा 498A के तहत अपराध नहीं, केवल आरोप उत्पीड़न साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं: दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि केवल दहेज की माँग को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत अपराध नहीं माना जा सकता और बिना ठोस सबूत के लगाए गए आरोप उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आते। कोर्ट ने पति के दूर के रिश्तेदारों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को खारिज करते हुए कहा कि वैवाहिक विवादों में परिवार के सदस्यों को अतिरेक रूप से फँसाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिससे बचने की आवश्यकता है।

मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पुलिस स्टेशन में 10 सितंबर 2019 को दर्ज प्राथमिकी (एफआईआर नंबर 178/2019) से जुड़ा है, जिसे पत्नी (उत्तरदाता नंबर 2) द्वारा दर्ज कराया गया था। शिकायत में पति सूरज गुप्ता, उनके माता-पिता और दूर के रिश्तेदार विनीता गुप्ता और उनके पति सूरज गुप्ता, उनके माता-पिता और दूर के रिश्तेदार विनीता गुप्ता और उनके पति पर दहेज माँगने और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।

शिकायतकर्ता की शादी 6 जून 2018 को हुई थी। उसने आरोप लगाया कि उसके ससुराल वालों ने उस पर गुड़गांव में एक संपत्ति खरीदने या अपने पिता के फ्लैट को पति के नाम करने के लिए दबाव डाला। इसके अलावा, उसने शादी में महंगे उपहार, गहने और ₹10 लाख के हनीमून गिफ्ट की माँग करने का भी आरोप लगाया।
शिकायत के अनुसार, पति और उसके परिवार ने मानसिक और शारीरिक रूप से उसे प्रताड़ित किया, जिससे वह 15 फरवरी 2019 को ससुराल छोड़ने के लिए मजबूर हो गई। हालाँकि, विनीता गुप्ता और उनके पति, जो दंपति के साथ नहीं रहते थे, ने तर्क दिया कि उन्हें झूठे आरोपों में फँसाया गया है ताकि पति और उसके परिवार पर दबाव बनाया जा सके।

मामले में कानूनी पहलू यह मामला IPC की धारा 498A की व्याख्या से जुड़ा था, जो किसी महिला के पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता के लिए दंडित करता है। याचिकाकर्ताओं ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत प्राथमिकी को निरस्त करने की माँग की, यह दावा करते हुए कि उनके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष आरोप नहीं थे और न ही उत्पीड़न के कोई ठोस सबूत थे।


कोर्ट का अवलोकन और फैसला न्यायमूर्ति अमित महाजन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हर दहेज माँग को धारा 498A के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया:

1.हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल (1992) – झूठी प्राथमिकी निरस्त करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए गए थे।
2.प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड राज्य (2010) --498A मामलों में पति के रिश्तेदारों को अतिरेक रूप से फँसाने को लेकर कोर्ट ने चेतावनी दी थी।
3.कहकशां कौसर बनाम बिहार राज्य (2022) – कोर्ट ने कहा था कि सामान्य आरोपों के आधार पर अभियोग नहीं चलाया जा सकता जब तक कि विशेष घटनाओं के ठोस सबूत न हों।

कोर्ट के मुख्य बिंदु:
“केवल दहेज की माँग को क्रूरता नहीं कहा जा सकता जब तक कि यह उत्पीड़न के साथ न हो, जिससे महिला आत्महत्या के लिए प्रेरित हो या गंभीर चोट पहुँचे।”

“धारा 498A IPC का उपयोग पति के दूर के रिश्तेदारों को फँसाने के लिए नहीं किया जा सकता।”
“वे ससुराल वाले जो दंपति के साथ नहीं रहते, उन्हें तब तक अभियोग में शामिल नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि उत्पीड़न में उनकी सक्रिय भूमिका स्पष्ट न हो।”

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्राथमिकी और आगे की कार्यवाही न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगी। इसलिए, हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ दायर प्राथमिकी और उससे संबंधित सभी कार्यवाही को निरस्त कर दिया।






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