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आस्था के आगे नतमस्तक "जीवन जोखिम"

"कहते हैं जहां चाह वही राह"
चाहे जितनी भी दुर्गम स्थिति बने परंतु मंजिल पाना हरएक का मकशद। हम बात कर रहे हैं महाकुंभ के अंतिम दौर के स्नान के बारे में जहां पहुंचने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा है हर रस्ते पर चले मुसाफिर का एक ही मकसद 144 वषों पर बनाने वाले अद्भुत संयोग पर महाकुंभ का स्नान को करके शास्त्रों में वर्णित इस अलौकिक क्षण को पाना और अपने जीवन को सार्थक बनाना है। बदले में चाहे जो भी दुर्गम स्थिति बने सब कुछ को पार करना चाहे जीवन ही जोखिम में क्यों ना पड़ जाए परंतु महाकुंभ स्नान को प्राप्त करना ही एक मकसद।
यातायात के हर एक संसाधन पर एक ही तरह का हुजूम महाकुंभ के अंतिम स्नान को प्राप्त करना चाहे वह रेलवे स्टेशन हो, एयरपोर्ट हो, बस अड्डे हों या सड़क मार्ग हो हर मार्ग पर एक ही मंजिल को पाने वाले लोग।

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