
प्रयागराज का सुजावन महादेव मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व रखने वाला मंदिर अपना अस्तित्व इतिहास बचाने की लड़ाई लड़ रहा है
ऐतिहासिक पौराणिक तथा धार्मिक महत्व रखने वाला सुजावन देव धाम अपना इतिहास बचाने में लगा है।
यमुना नदी के बीच पत्थरों के टीले पर स्थित मन्दिर के अवशेष धीरे-धीरे ढह रहे हैं। वर्षों पहले इस स्थान को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की गई थी जो आज तक सुजावन देव टीले को जल धारा से बचाने की शासन द्वारा कोई व्यवस्था नहीं की गई। जबकि शासन प्रशासन इसका इतिहास जानने की कोशिश करता रहा है। लेकिन इसके दफन होते इतिहास को बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की जा रही है। प्रयागराज शहर से 15 किलोमीटर दूर बारा तहसील अंतर्गत विकास खंड जसरा के ग्राम सभा देवरिया यमुना तट के समीप बीच में करीब 19 मीटर उंचे टीले पर सुजावन देव मन्दिर (शिव मन्दिर) जो अष्ट पाशीष छतरी नुमा है जो अब क्षतिग्रस्त होती जा रही है। धीरे-धीरे उसकी पहचान समाप्त होती जा रही है। उक्त क्षेत्र की पौंराणिकता जिसका पुराणों में उल्लेख मिलता है। धार्मिक पहचान शिव मन्दिर के रूप मे है।जबकि पीढ़ियों से सुजावन देव मन्दिर में सेवा करते चले आ रहे गोस्वामी परिवार के स्वर्गीय बाबा गिरजा गोस्वामी के पुत्र पुजारी बाबा ज्ञानेन्द्र गोस्वामी के अनुसार 1645 ई तक सियावन देवता अथवा सुजान देवता के नाम से मन्दिर प्रसिद्ध था जो अब सुजावन देवता के नाम से चर्चित है। उसी वर्ष औरंगजेब के मामा इलाहाबाद के सूबेदार शाइस्ता खां ने उसका विध्वंस करा दिया और उसके स्थान पर एक अष्ट पाइवीय खुली छतरी बनवा दिया। इससे संबधित एक अभिलेख मन्दिर के दिवारों पर खुदा है। कुछ समय पश्चात फिर इस छतरी के नीचे शिव लिंग की स्थापना करा दी गई। इस मन्दिर के नीचे एक उंची खड़ी चट्टान पर पांचो पांडवों की मुर्तिया बनी हुई है। जहां जाने वाले द्वार को बन्द कर दिया गया है। इस नदी की धार के समीप बैठने की मुद्रा में बुद्ध की छोटी सी प्रतिमा है। जिसकी पूजा भगवान महादेव के रूप मे की जाती है। पांच फनों की छतरी वाले नाग की सुन्दर मुर्ति है जो सिगरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। सीता रसोइयां , शिव मुर्ति, हनुमान की प्रतिमा और गणेश मन्दिर भी यहां प्रसिद्ध हैं। जनश्रुतियों के आधार पर भगवान श्री राम वन गमन के समय यहां पर निवास किये थे और शिवलिंग की स्थापना की थी जिससे उक्त स्थल अतीत से ही प्रसिद्ध एवं चर्चित है। भूत भावन भगवान महादेव की पूजा-अर्चना कालान्तर से होती आ रही है जो आज भी कार्तिक मास में यमुना महोत्सव के रूप में यम द्धितीया पर शुक्रवार को शुरू हुआ दो दिवसीय बिशाल मेले का आयोजन किया जा रहा है। तथा कार्तिक मास में पांच रविवार लोग यमुना स्नान, शिव जी की पूजा-अर्चना करते हैं। और पूजा-अर्चना के कार्य धार्मिक आस्था के साथ होता है हर- हर महादेव के गगनभेदीे नारे गूंजते रहते हैं। वर्षों से लोग भीटा क्षेत्र को विकसित करने उसे पर्यटक स्थल का दर्जा दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। हलाकि सुजावन देव मन्दिर की पहचान होता देख क्षेत्रिय लोग परेशान हैं