क्रोध
मनुष्य के विवेक को क्षय करने की एक अशांत शक्ति का नाम क्रोध है/ क्रोध का प्रभाव अत्यंत घातक तथा प्रतिकूल होता है/क्रोध आयु व परिस्थिति के बंधन से परे होता है / क्षणिक समय के लिए आवेश की पराकाष्ठा के असीम शिखर पर पहुंचकर मनुष्य अपना संतुलन खो देता है / इस अल्प समय में वह अपने जन्म से संयोजित धैर्य, विवेक व अनुशासन की पूंजी का परित्याग कर देता है / संपूर्ण जनमानस को अवगत होना चाहिए कि धैर्य तथा क्रोध के मुकाबले में धैर्य उच्च कोटि का स्थान रखता है/ अंततः सार यही है कि क्रोध के अल्प समय में अगर धैर्य की पूंजी धारण कर ली जाए तो होने वाली व्यक्तित्व क्षति को सुरक्षित किया जा सकता है/ क्रोध का व्यापक प्रभाव संबंधों को विच्छेद कर देता हैं/ अब यहां इस विवाद से बचने की मेरी सलाह है की जायज क्रोध और नाजायज क्रोध कुछ नहीं होता / क्रोध कैसा भी हो व्यक्तित्व पतन का मार्ग प्रशस्त करता है/ पाठक भी क्रोध नामक आसुरी शक्ति से दूर रहे तो प्रभु भली करेंगे /लेखक -अभिषेक धामा✍️