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स्क्रीन टाइम और बढ़ता अंधाधुंध

स्क्रीन टाइम और बढ़ता अंधाधुंध @(नवनीत झा)

पहले के समय में लोग तारों की स्थिति से समय का अंदाजा लगा लिया करते थे। बदलते परिवेश में अब वक्त बदल गया है। लोग स्क्रीन टाइम को फॉलो करने लग गए हैं। एक ने तो यह कहा कि मैं कुत्तों के भौंकने की आवाज से टाइम का पता लगा लेता हूं। जमाना अब वह नहीं रहा। इतना डिजिटल हो गया है कि सड़क पर गाड़ियों की चू चू पू पू से भी समय का अंदाजा लगा लेते हैं। ऐसा मैं नहीं का कह रहा। एक ग्रामीण से मैंने बात करी उसने मुझे यह बताया।
जिसके पास फॉलोअर्स नहीं होते हैं वह सब की इज्जत करते हैं। जिसके पास फॉलोअर्स बहुत सारे होते हैं वह किसी की इज्जत नहीं करते हैं। फॉलोअर्स भी आजकल पैसा हो गया है। भैया जी स्क्रीन पर दिन में 8 घंटे लोगों रहते हैं। साथ ही साथ कंप्यूटर से भी जुड़े रहते हैं। अब आप ही बताइए की भैया जी कितने साल और आयु पूरी करेंगे?
आजकल के बच्चों को ही ले लीजिए। एक हमारे पिताजी का जमाना था। बच्चे पहाड़ नदियां पार करके पढ़ाई लिखाई करने जाते थे। और स्क्रीन टाइम ऐसा आया कि बच्चे अब रिमोट और हैंड वॉच की जो लाइट होती है उसकी रोशनी में पढ़ रहे हैं। आप समझ सकते होंगे।
जैसा कि मैं अपने लेख का शीर्षक रखा है स्क्रीन टाइम और बढ़ता अंधाधुंध तो आप लोगों की समझ में शीर्षक पढ़कर के ही आ गया होगा कि इस पूरी रामायण का क्या सार है।
दरअसल यह भारत की समस्या का एक बेजोड़ हिस्सा है। इससे मैं नहीं आप नहीं बल्कि समस्त पढ़ा लिखा समझदार परिवार चपेट में आ चुका है। जब आपको आंखों से ही नहीं दिखेगा तो आप खली बन के क्या ही कर लीजिएगा। हिंदी में इस बीमारी को सुखी आंख कहा जाता है। वही अंग्रेजी की बात करें तो इसे ड्राई आई सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है। यह बीमारी तो होती ही होती है इसके साथ ही साथ जैसा कि आप देखेंगे वैसा ही करेंगे। यह भी एक कटु सत्य है। पहले दादी नानी कहानी सुनाया करती थी। जिससे मनोवैज्ञानिक रूप से मन की शक्ति बढ़ती थी। आज के युग में आप कहानी देखी और साथ-साथ सुनिए और अपनी आंखें भी खराब करिए। मेरे लेख इस बात की पुष्टि नहीं करते कि आपके त्याग देना चाहिए। अपितु मेरा तो यह मानना है कि कुछ समय आप भी चू चू पू पू से दूर ही रहिए तो बेहतर होगा। अच्छा श्रोता होना भी उतना ही अच्छा है जितना एक वक्ता होना। कथा का केंद्र बिंदु यही है कि चींटी को देखने से अच्छा है कि आप हाथी को देखिए। अच्छी सोच वालों को हर समय अच्छा ही महसूस होता है। वक्त सबको मिलता है जिंदगी बदलने के लिए। लेकिन जिंदगी दोबारा नहीं मिलती वक्त बदलने के लिए। आपकी जिंदगी कितनी ही बुरी क्यों ना गुजर रही हो,आपको हर सुबह श्री राम का धन्यवाद करना चाहिए, कि आपके पास जिंदगी है। स्क्रीन टाइम है। जो आप अपने आप को मेनू प्लेट कर सकते हैं।
रील को अपने जीवन में प्रवेश देने से पहले यह ध्यान रखना की रील कितनी ही बार टिप टॉप करके बदल ही क्यों न जाए उसका वास्तविक रूप एक जहरीले सर्प की तरह ही होता है। जो हर नहीं मानते वही जीत का स्वाद चखते हैं। स्क्रीनप्ले से आंखें रेलवे स्टेशन हो जाएंगी जिसमें भीड़ तो हो बहुत होगी लेकिन अपना कहने के लिए कोई नहीं बचेगा। आपको नहीं तो वही शिकायत रहेगी कि आप जिंदगी में वहीं के वहीं रह गए आगे नहीं बढ़ पाए। मैं यह कहना चाहूंगा यह शिकायत वही लोग करते हैं ,जैसे कि उनके जीवन का निर्णय वह नहीं कोई और ले रहा हो। सच्चाई तो यह है कि सबके पास बराबर मौका होता है। सबके पास बराबर समय होता है लेकिन यह बात सबको समझ में नहीं आती। अगर आप कोई काम करना चाहते हो,अगर आप कोई काम सीखना चाहते हो,तो आपके पास समय भी है मौका भी है।
कहते हैं ना इंसान चाहे क्या नहीं कर सकता। केवल इच्छा शक्ति होनी चाहिए। बस अपने समय का सही इस्तेमाल कीजिए। संसाधनों और पैसों का सही इस्तेमाल होना चाहिए। जिसका जैसा चरित्र होता है उसका वैसा मित्र होता है।
इस लेख के माध्यम से मैं समस्त युवाओं को यह कहना चाहूंगा कि अपने जिंदगी का कुछ समय ऐसे कामों में व्यतीत करें जो देश की भलाई के लिए समर्पित हो।
जिंदगी में सब कुछ ऐसे ही नहीं मिलता कुछ चीज मुस्कुरा कर छोड़ देनी चाहिए इसी के साथ में अपनी पंक्तियों को विराम देता हूं।

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