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जीरो एफ आई आर से अनभिज्ञ गाजियाबाद प्रशासन- नवनीत

सरकार के बड़े-बड़े दावे देखे जा रहे हैं। जरूरत है पुराने सिपाही दीवानों को ट्रेनिंग की। ग्रामीण पुलिस को तो इसकी जानकारी भी नहीं है। अब किसी भी थाने में घटना की प्राथमिकता दर्ज कराई जा सकती है। इसे जीरो एफ आई आर के नाम से दर्ज किया जाता है। इसमें फिर क्या होता है, यह विषय तो आगे चर्चा करेंगे लेकिन चर्चा करने से पहले आपको बताऊंगा कि जिले में कुछ ऐसे भी गांव हैं जहां के दीवान , दरोगा जी, सब इंस्पेक्टर साहब, किसी को 0 एफ आई आर के बारे में कुछ भी नहीं पता। इन सब को बेहद ट्रेनिंग की जरूरत है। एक दीवान जी तो मेरे से बहस करने लग गए। कहने लगे यह तो कुछ होता ही नहीं है।

क्या होता है जीरो एफ आई आर-

अब किसी भी थाने में घटना की प्राथमिकता दर्ज कराई जा सकती है। इसे जीरो एफ आई आर के नाम से जाना जाता है। यह व्यवस्था जुलाई 2024 से ही लागू है। इस व्यवस्था के अंतर्गत पीड़ित को थाने भी जाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। पीड़ित घर बैठे ही पुलिस की मदद ले सकता है। जीरो एफ आई आर को सीसीटीएनएस के जरिए जोड़ा गया है।यह भारत की राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना का हिस्सा है.।इसे राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) कार्यान्वित करता है।इससे किसी भी क्षेत्र में होने वाले अपराध और अपराधी की पहचान आसानी से की जा सकती है। जीरो एफ आई आर पर क्या कार्रवाई हो रही है यह ऑनलाइन चेक किया जा सकता है। पीड़ित को 90 दिन के भीतर अपने मामले की प्रगति पर नियमित रूप से जानकारी पाने का अधिकार होगा।इससे वास्तविक समय में अपराध की जांच और अपराधियों का पता लगाने में मदद मिलती है।सीसीटीएनएस में पुराने और नए दोनों प्रावधान हैं।

अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क प्रणाली (सीसीटीएनएस) भारत सरकार की एक पहल है, जिसका उद्देश्य पुलिस बल का आधुनिकीकरण करना है, जिसका उद्देश्य अपराध जांच और अपराधियों का पता लगाने के क्षेत्र में परिणामों में सुधार लाना, देश भर में विभिन्न पुलिस संगठनों और इकाइयों के बीच सूचना एकत्र करना और उसका प्रसार करना है।

पुलिसिया तंत्र रील बनाने में मस्त पस्त। जब इन्ही को जानकारी नहीं तो यह क्या न्याय का काम करेंगे। ग्रामीण पुलिस की बात हो रही है ,यहां पर आपको बता दूं। पुलिस तो पुलिस है। ग्रामीण पुलिस को ट्रेनिंग की आवश्यकता अति आवश्यक देखने को मिल रही है। या यूं कहें प्रशासन जानता है और इसको शेयर करने में कंजूसी दिखा रहा है। यह क्या डिजिटलाइज़ेशन हो रहा है देश में, जहां एक ओर तो प्लास्टिक करेंसी को बढ़ावा मिल रहा है और दूसरी ओर पुलिसिया तंत्र जानकारी शेयर या बताने में संकुचित दिखाई दे रहा है। ग्रामीण पुलिस लोनी के इलाकों में इशारे बाजी में काम करती हुई दिख रही है। लोनी के समीप कई गांव की चौकियो में सीसीटीवी कैमरा तक नहीं दिखाई दे रहा है। ग्रामीण पुलिस के कार्यों मे निपुणता नहीं दिख रही है।

शक के घेरे में ग्रामीण पुलिस-

एक मनमाना रवैया ही दिखाई दे रहा है। जरूरत है आज देश को उन नेताओं की ,जो लोनी जैसे पिछड़े शहर को एक नई दिशा प्रदान करें एवं बयान बाजियो, कव्वाली, शायरियो को दर-किनार करते हुए एक मिसाल पेश करें। जिससे की आने वाला युवा वर्ग कुछ सीख प्राप्त करें। आलम तो यह है कि एफआईआर एक बार लिखो अगली बार पूछने जाओ तो वह मिलती ही नहीं है उसके बाद वही फिर दूसरी बार एफ़आईआर लिखने के लिए कहा जाता है।

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