अधिकारी गांव-गांव जाकर किसानों को दे रहे हैं नरवाई न जलाने की समझाइश जिला
• खेतों में नरवाई जलाने पर होगी कार्यवाही शासन के निर्देशानुसार खेतों में नरवाई जलाने पर कार्यवाही की जाएगी। किसानों को नरवाई जलाने से रोकने के लिए विकासखंड स्तर पर पंचायत वार अधिकारियों की टीम गठित की गई हैं, जो किसानों को गांव-गांव जाकर नरवाई न जलाने के लिये समझाइश दे रही है। नरवाई न जलाने के लिये गेंहूँ एवं चना के पंजीयन केन्द्रो, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय, सेवा सहकारी समितियां एवं ग्राम पंचायत स्तर पर संकल्प पत्र भरवाये जा रहे हैं एवं उप संचालक कृषि द्वारा मैदानी अमले को गेहूं फसल कटाई उपरांत उचित नरवाई प्रबंधन करने एवं किसानों को जागरूक करने के निर्देश दिए गए है। किसान कल्याण तथा कृषि विभाग के उप संचालक श्री केके पांडे ने बताया कि खेतों में नरवाई जलाने मिट्टी की उर्वरता पर असर पडने के साथ ही साथ खेतों की फसलों/मकानों/खलिहानो आदि में अग्नि दुर्घटना की संभावना रहती हैं। नरवाई के धुएं से उत्पन्न कार्बन डाई ऑक्साइड से वातावरण का तापमान बढ़ने से प्रदूषण में वृद्धि होती हैं, जिससे पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ता हैं। खेत की उर्वरा परत लगभग 6 इंच ऊपरी सतह पर ही होती हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के खेती के लिये लाभदायक मित्र जीवाणु उपस्थित रहते हैं। नरवाई जलाने से ये जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति को नुकसान होता है और धीरे-धीरे भूमि बंजरता की ओर बढ़ने लगती हैं। नरवाई न जलाने एवं उसके स्थान पर रोटावेटर चलाकर नरवाई मिट्टी में मिला देनी चाहिए, जिससे नरवाई की कम्पोस्ट खाद तैयार हो जावेगी। नरवाई को खेत से अलग कर भू-नाडेप, डीकम्पोजर एवं वर्मी कम्पोस्ट द्वारा खाद जैविक खाद बनाया सकता हैं। उन्होंने किसानों से सुपर सीडर/हैप्पी सीडर कृषि यंत्र से फसल कटाई के पश्चात् लोकहित एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए खेत में बचे शेष फसल अवशेषों का प्रबंधन करने एवं नरवाई न जलाने के लिए कहा है। जिन किसानों के पास दो एकड़ तक भूमि है उन्हें नरवाई जलाने पर पर्यावरण क्षति के रूप में 2500 रूपये प्रति घंटे, दो से पांच एकड़ की भूमि पर 5000 रूपये एवं पांच एकड़ तक भूमि होने पर 15 हजार रूपये प्रति घंटे के मान से आर्थिक दण्ड भरना होगा।