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संपादकीय: दंत शिक्षा की टूटती रीढ़ – जब शिक्षक प्रतीक बन कर रह गए

हम दंत शिक्षक हैं… और यह हमारी आवाज़ है।

कभी पढ़ाना हमारा जुनून था। विद्यार्थियों की आंखों में सपना देखना और उसे दिशा देना हमारा सौभाग्य था। क्लासरूम सिर्फ ज्ञान का स्थान नहीं, बल्कि समाज निर्माण की प्रयोगशाला हुआ करता था। लेकिन समय बदला… और साथ ही बदल गई शिक्षा की दशा और दिशा।

हममें से कई ने सरकारी नौकरी का विकल्प सिर्फ इसलिए चुना था क्योंकि परिवार ने यही चाहा। पर मन तो उसी ओर खिंचता रहा, जहाँ chalk और board थे। जब वापस लौटे शिक्षण में, तो सोचा था कि फिर वही ऊर्जा मिलेगी। लेकिन अब शिक्षण, शिक्षण नहीं, एक समझौता बनकर रह गया है।

आज दंत शिक्षा संकट में है। और हम सब इसका हिस्सा हैं।

2000 तक जहां देश में करीब 150 दंत कॉलेज थे, आज ये संख्या 320 से ज़्यादा है। हर साल 30,000 से अधिक छात्र स्नातक बनते हैं, पर नौकरी के अवसर 1000 से भी कम। इस असंतुलन ने ना सिर्फ छात्रों को, बल्कि शिक्षकों और संस्थानों को भी गहरे संकट में डाल दिया है।

अब हम शिक्षक सिर्फ प्रतीक बन गए हैं।
निजी संस्थानों में हम सिर्फ निरीक्षण और कागजी खानापूर्ति तक सीमित रह गए हैं। स्थायित्व नहीं, प्रोत्साहन नहीं, सम्मान नहीं। एक तरफ सरकारी संस्थानों में लाखों का वेतन, दूसरी तरफ हम निजी महाविद्यालयों में संघर्ष करते हैं बीस-तीस हजार की नौकरी में।

छात्रों की रुचि भी अब घट चुकी है।
NEET में MBBS के बाद बची सीटें ही BDS के हिस्से आती हैं। हजारों सीटें हर साल खाली रह जाती हैं, क्योंकि छात्र जान चुके हैं – डिग्री तो मिलेगी, पर करियर नहीं।

सरकारी नीति अनियोजित है।
गांवों, कस्बों और PHC/CHC में दंत चिकित्सकों की नियुक्तियां नगण्य हैं। निजी कॉलेजों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है, छात्र कम, क्लिनिकल लोड ना के बराबर, संसाधन घटते जा रहे हैं। और इन सबसे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है शिक्षक, जो दिन-प्रतिदिन अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।

अब बदलाव की ज़रूरत है और वह भी तुरंत।
हम सबकी सामूहिक मांग है:

1. दंत चिकित्सा को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में गंभीरता से शामिल किया जाए।
2. ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में दंत चिकित्सकों की नियुक्तियों के लिए नए पद बनाए जाएं।
3. छात्रों के लिए फैलोशिप, स्कॉलरशिप और रिसर्च के अवसर बढ़ाए जाएं।
4. निजी संस्थानों को सरकार द्वारा सहयोग मिले – PPP मॉडल अपनाया जाए।
5. शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण, शोध, और करियर ग्रोथ के अवसर सुनिश्चित हों।

यह सिर्फ हमारी नहीं, पूरे समाज की लड़ाई है।
क्योंकि जब शिक्षक ही असुरक्षित होंगे, तो राष्ट्र निर्माण की नींव कैसे मजबूत होगी?

हम हर वो शिक्षक हैं, जो कभी सपनों से भरे थे और आज भी उस सपने को सहेज कर खड़े हैं।
अगर अब नहीं बोले, तो कल शायद बोलने की ज़रूरत ही न रहे।


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