
अम्बेडकर ने जो अधिकार महिलाओं को दिए वो किसी धार्मिक ग्रंथों ने नहीं दी I आज महिलाओं का शोषण इस कदर बढ़ा, आज फिर देश को एक अम्बेडकर की जरुरत I
दुनिया का एकमात्र इंसान जिसे स्कूल में दूसरे बच्चों के के साथ बैठकर पढ़ने से रोका गया l जिस बच्चे को दूसरे बच्चों के साथ पानी नहीं पीने दिया गया उस होनहार ने देश का संविधान लिखा और पूरी व्यवस्था को बदल कर रख दिया I बाद में उस पर इल्जाम लगाया गया कि उसने आरक्षण के तहत गरीब दलित वंचित लोगों को आगे बढ़ाने का काम किया l किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं गया कि देश की लगभग 70 करोड़ महिलाओं की सुरक्षा के लिए अधिकार भी तो बाबा साहेब की देन है l
प्राचीन हिन्दू कानूनों में महिलाओं को अलग श्रेणी में रखकर पुरुषों के अधीन कर दिया गया I जिसको अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता था और उसे पुरुषों द्वारा ही नियंत्रित किया जाता था I इस प्रक्रिया में प्राचीन कानून संहिताओं जैसे अर्थशास्त्र, मनुस्मृति और अन्य धर्म शास्त्रों में भी महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से वंचित रखा गया, इसके विपरीत बाबासाहेब द्वारा प्रस्तावित हिंदू कोड बिल में लैंगिक भेदभाव को समाप्त करके महिलाओं को संपत्ति का बराबर अधिकार देने की मांग की गई I ऐसा इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर साबित होता है कि जिन महिलाओं के पास संपत्ति नहीं थी उन्हें घरेलू हिंसा व अन्य खतरों से जूझना पड़ता था I भारत का संविधान सभी नागरिकों को उनके जाति,धर्म,लिंग एवं अन्य क्षेत्रों में असमानताओं के बावजूद अधिकारों में समानता की गारंटी देता है I पैतृक संपत्ति के अधिकार से इनकार करना नागरिक के तौर पर महिलाओं के खिलाफ है क्योंकि महिलाएं भी इस देश की नागरिक है I भारत का संविधान जिसमें अंबेडकर साहब ने सामाजिक न्याय की नींव रखी उसमें लैंगिक समानता के बिना सामाजिक न्याय के उद्देश्य को साकार नहीं किया जा सकता I
स्त्री सृष्टि की रचयिता है पूरे संसार की जननी है लेकिन जब बात अधिकारों की आती है तो औरत को जिम्मेदारी के तौर पर चूल्हा चौका ही मिलता है उसे ही उसका अधिकार बता कर चुप कर दिया जाता है l प्राचीन काल से लेकर यहां तक कि मानव उत्पत्ति से लेकर वर्तमान तक महिलाओं की राजनीतिक आर्थिक, शैक्षिक एवं सामाजिक सभी तरह के मानवाधिकारों से वंचित रखा गया बस इन्हीं परिस्थितियों से जन्म होता है अंबेडकर के हिंदू कोड बिल की विचारधारा का जहां उनकी मानवीय संवेदनाएं इस उद्देश्य पर काम कर रही थी I हिंदू कोड बिल में सभी महिलाओं को चाहे वह किसी जाति धर्म या विशेष समुदाय से संबंध रखती है, उनकी सुरक्षा का संवैधानिक अधिकार उनको दिया गया I डॉ अंबेडकर का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्र भारत में हिंदू कोड बिल के माध्यम से भारतीय महिलाओं को पुरुषों के बराबर समान अधिकार दिलवाना था जहां पितृसत्तात्मक समाज द्वारा महिलाओं को अधिकारों से वंचित रखा जाता था I मामला पारिवारिक और सामाजिक या शैक्षिक हो पुरुषों ने महिलाओं को हमेशा अपने अधीन माना और महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ आवाज उठाते रहे I लेकिन समय के साथ-साथ स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा ज्योतिबा फुले, राजा राममोहन राय और बाद में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और समय-समय पर कानून बनाए I सती-प्रथा निषेध, बहु-पत्नी विवाह निषेध इत्यादि अनेक कानून से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की शुरुआत की गई I महिलाओं ने भी सामाजिक परिवर्तन देखते हुए अपनी आवाज बुलंद करना शुरू कर दी थी I
1832 में हमारे देश में कानूनों के संहिताकरण करने की आवश्यकता महसूस हुई और इसके बाद हिंदू और मुस्लिम कानून को संहिता करने के लिए रॉयल कमीशन की नियुक्ति की गई जिसके लिए लॉर्ड मैकाले को बड़ी जिम्मेदारी दी गई I इसके 22 वर्ष बाद एक नई पैनल कोड को कानून का दर्जा दिया गया I इसी क्रम में आगे चलकर बाबासाहेब अंबेडकर को 1948 में हिंदू कोड बिल तैयार करने के लिए गठित उप समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया I 1948 में प्रधानमंत्री नेहरू ने नई संहिता का मसौदा तैयार करने का काम एक उप समिति को सौंपा I डॉक्टर अंबेडकर को इसका प्रमुख बनाया गया बाद में इसमें संपत्ति और गोद लेने के सवाल पर पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता केवल एक पत्नी विवाह को कानूनी दर्जा देना l नागरिक विवाह में जाति प्रतिबंध को समाप्त करना और न्यायोचित ठहराने की आवश्यकता जैसे आवश्यक सिद्धांत लिखवाए गए I हिंदुओं के निजी जीवन को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों के इस सवाल ने ना केवल हिंदू महासभा के परंपरावादियीं के बीच बल्कि कांग्रेस नेताओं के बीच की गहरी भावना पैदा की I
इस प्रक्रिया में डॉ राजेंद्र प्रसाद तत्कालीन राष्ट्रपति भी शामिल थे जो संविधान सभा के अध्यक्ष होने के बाद भारतीय गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुने गए थे I पार्टी अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया सहित कई अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका विरोध किया I
जवाहरलाल नेहरू ने भी इस संहिता में डॉ अंबेडकर की तरह ही भारत के आधुनिकीकरण की आधारशिला में नारी सशक्तिकरण के रूप में एक मुख्य पहलू देखा था I प्रधानमंत्री नेहरू ने ये भी घोषणा की थी कि यदि यह विधेयक पारित नहीं हुआ तो उनकी सरकार इस्तीफा दे देगी I डॉ अंबेडकर ने विधेयक को यथाशीघ्र संसद में प्रस्तुत करने का दवाब डाला I प्रधानमंत्री नेहरू ने थोड़ा सा धैर्य रखने को कहा I परंपरावादी कांग्रेसियों ने इसे चार उपसमूहों में विभाजित करने के बाद विकृत कर दिया और विवाह और तलाक संबंधी हिंदू कोड बिल के हिस्सों को संशोधनों का नाम देकर विकृत कर दिया I नेहरू द्वारा जरा सा भी विरोध न करने पर इसे दफन कर दिया गया I यह मानते हुए कि उन्हे प्रधानमंत्री द्वारा पर्याप्त समर्थन नहीं मिला I अंबेडकर ने नाराज होकर 27 सितंबर को अपना त्यागपत्र सौंप दिया I
बिल का विरोध करने वालों ने तर्क दिया कि इस कानून को सिर्फ हिंदुओं के लिए ही क्यों लाया जा रहा है बिल का विरोध बढ़ता गया I देश भर में विरोध प्रदर्शन होने लगे और बिल पास ना हो सका और परिणाम हुआ बाबा साहेब का कानून मंत्री पद से त्यागपत्र I
हिंदू कोड बिल पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता की संवैधानिक गारंटी का पालन करने की दिशा में पहला कदम था I इस विधेयक पर 4 साल से अधिक समय तक बहस हुई और बेनतीजा रही जिसका परिणाम बाबा साहेब का इस्तीफा I कांग्रेस हिंदू महासभा और अन्य हिंदू धार्मिक अधिकारियों द्वारा हिंदू कोड बिल का जमकर विरोध किया गया I
परंपरागत रूप से संपत्ति के अधिकार के लिए महिलाओं की इच्छा से अधिकार न देना बल्कि उपहार के रूप में थोड़ा बहुत देकर उन्हें संतुष्ट या चुप करवा देना, कानून से पहले यही परंपरा थी I दहेज के नाम पर उपहार पैतृक परिवार की इच्छा के अनुसार समाज में अपने नाम और प्रसिद्धि के लिए दिए जाते थे I बाबा साहेब ने महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति सचेत कर अपनी संपत्ति के अधिकार की मांग के मार्ग को प्रशस्त किया है I इसके बावजूद कानूनी अज्ञानता के कारण और समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता के चलते बहुत सी महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित रह जाती हैं I महिलाओं को समाज में पुरुषों के समान स्वीकार करने और मान्यता देने से ही इस समस्या का समाधान किया जा सकता है I धर्म आधारित कानून में महिलाओं को अपमानित किया गया है महिलाओं का शोषण किया गया है लेकिन बाबा साहेब के संविधान में महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा दिया है पुरुषों के समक्ष लाकर खड़ा कर दिया है I जरूरत है तो महिलाओं को कानूनी साक्षरता के प्रति जागरूक होने की न कि धर्म के घीसे-पीटे परंपरावादी ढांचे पर चलने की I
पुरे देश की महिलाओं को बाबा साहेब के प्रति हमेशा एक सम्मान की दृष्टि रखनी चाहिए I