
10 वर्षों बाद जारी पुनर्मूल्यांकन नोटिस को दिल्ली हाईकोर्ट ने ठहराया अवैध – करदाताओं के अधिकारों की हुई पुष्टि
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में एसेसमेंट ईयर (AY) 2014-15 के लिए जारी पुनर्मूल्यांकन (Reassessment) नोटिस को निरस्त करते हुए आयकर विभाग को कड़ा संदेश दिया है कि कर कानून की प्रक्रिया और सीमाएं केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि एक संवैधानिक बाध्यता हैं।
मामले की पृष्ठभूमि:
जुलाई 2020 में Om Kothari Group के खिलाफ एक तलाशी (Search) के दौरान यह जानकारी सामने आई कि Synod Farms नामक इकाई ने एक फ्लैट खरीदा था, और उसके लिए आंशिक भुगतान नकद (On-Money) में किया गया था। इस आधार पर आयकर अधिकारी (AO) ने 11 मार्च 2023 को एसेसमेंट ईयर 2015-16 से 2021-22 तक के लिए पुनर्मूल्यांकन की संतुष्टि (Satisfaction Note) दर्ज की। लेकिन अजीब बात यह रही कि AO ने इसके बावजूद धारा 148A(b) के तहत AY 2014-15 के लिए नोटिस जारी कर दिया, जबकि वह साल संतुष्टि नोट का हिस्सा ही नहीं था।
करदाता की आपत्ति और कोर्ट की दृष्टि:
Synod Farms ने इस नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती दी और तर्क दिया कि AY 2014-15 के संबंध में न तो कोई नई सूचना थी और न ही AO द्वारा कोई संतोषजनक कारण दर्ज किया गया था। इसके अलावा, यह नोटिस धारा 149 के तहत अनुमत समयसीमा से काफी बाद – लगभग 10 साल बाद – जारी किया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय:
माननीय उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुनर्मूल्यांकन की समयसीमा की गणना तलाशी की तारीख से नहीं, बल्कि AO द्वारा दर्ज की गई संतुष्टि की तारीख से की जानी चाहिए। चूंकि AY 2014-15 के लिए कोई अलग से सूचना या कारण नहीं दर्शाया गया था और नोटिस 10 वर्षों के पश्चात जारी किया गया, अतः यह कानूनी रूप से समयसीमा से बाहर (Barred by Limitation) था।
निष्कर्ष:
यह निर्णय न केवल करदाताओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि आयकर विभाग को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया और समयसीमाओं का पालन करना अनिवार्य है। AO की “संतुष्टि” कोई मात्र औपचारिकता नहीं, बल्कि एक कानूनी आधार है, जिसके बिना किसी भी पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती।
यह फैसला कर कानून के क्षेत्र में कार्यरत सभी पेशेवरों के लिए एक मार्गदर्शक बन सकता है, और करदाताओं को यह विश्वास दिलाता है कि कानून के दायरे में रहते हुए उनके अधिकार सर्वोपरि हैं।
— एडवोकेट अरविंद अग्रवाल
(कर कानून मामलों में विशेषज्ञ)