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पिछड़ता प्राइमरी विद्यालय ,फलता फूलता कॉन्वेंट, पिसता अभिभावक...

पठन,पाठन का सत्र शुरू होते ही निजी स्कूलों की महंगी किताबें महंगे ड्रेस और महंगी फीस का हो हल्ला चारों तरफ गूंजने लगता है कुछ दिन समाचार बनता है फिर स्कूल अपने रोजगार में छात्र पठन पाठन में अभिभावक फीस का पैसा जोड़ने में व्यस्त हो जाते है बात आई गई हो जाती है न सरकार कुछ कहती है न जनता कुछ कर पाती है
लेकिन सवाल ये उठता है कि इसके जिम्मेदार कौन है सरकार ने गांव गांव सरकारी प्राइमरी विद्यालय खोले हैं, दो से तीन किलोमीटर पर इंटर कॉलेज खुले है जहां छात्रों को कई तरह की मुफ्त सुविधा उपलब्ध है अच्छे वेतन पर अध्यापक नियुक्त है फिर भी इन स्कूलों के होते हुए अभिभावक महंगी फीस होते हुए भी निजी कॉलेजों में अपने बच्चों को क्यों भेज रहे या भेजने को मजबूर हैं, इसका जवाब तो सरकारी स्कूल के अध्यापक और उस से संबंधित अधिकारीयों से पूछा जाना चाहिए कि इतने अच्छे वेतन इतनी सुविधा देने के बाद भी इन स्कूलों में बच्चों की संख्या कम क्यों होती जा रही है,,,पूरे यूपी के अगर प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों की सही संख्या गिन ली जाए तो एक से पांच तक जितने छात्र मिलेंगे वहां निजी स्कूल की किसी एक कक्षा के एक वर्ग की संख्या उतनी होगी जबकि सरकारी प्राथमिक स्कूल में मुफ्त शिक्षा ,मुफ्त किताब, मुफ्त ड्रेस, यहां तक कि दोपहर में भोजन की भी व्यवस्था है फिर भी ये हाल है,,,तो इसका जो पहली नजर में कारण नजर आता है कि सब कुछ तो है यहां लेकिन शिक्षण कार्य ही उचित नहीं है, यहां शिक्षण के स्तर पर शिक्षक या जिम्मेदार अधिकारी काम के नाम पर कोताही कर रहे है,,,शिक्षक ज़्यादातर या तो अनुपस्थित रहते हैं या उपस्थित होते भी है तो सही से शिक्षण कार्य नहीं करते है, और ये बात ये भी बखूबी जानते हैं कि यहां का शिक्षण कार्य उचित नहीं है इसीलिए ये खुद के बच्चों को भी अपने ही स्कूल में न पढ़कर कॉन्वेंट में भेजते हैं अगर ये शिक्षक अपने काम के प्रति ईमानदार होते तो इन सरकारी स्कूलों की ये स्थिति नहीं होती और इनकी लापरवाही और कामचोरी का नतीजा है कि गरीब कमजोर आदमी निजी स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने को मजबूर है जहां महंगी फीस भरते भरते अभिभावक की कमर टूट जाती है,,सरकार और जिम्मेदार अधिकारियों को इस पर कठोर कदम उठाने की जरूरत है कि सरकार अरबों रुपया इन शिक्षको पर खर्च कर रही फिर भी परिणाम ढाक के तीन पात है गरीब छात्रों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा ...
ऋषि समीर प्रयागराज

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