
बागमली स्थित चन्द्रसुधा आवासीय परिसर में सत्कृति साहित्य नामक साहित्यिक संस्था का समारोह पूर्वक शुभारंभ किया गया।
बागमली स्थित चन्द्रसुधा आवासीय परिसर में सत्कृति साहित्य नामक साहित्यिक संस्था का समारोह पूर्वक शुभारंभ किया गया। साहित्य और संस्कृति को समर्पित इस संस्था का संयोजन कवि और नाटककार अखौरी चन्द्रशेखर ने किया। शुभारंभ सत्र की अध्यक्षता साहित्यकार शालिग्राम सिंह अशांत ने किया। आगत सभी अतिथियों को पुष्पमाला अर्पित कर स्वागत किया गया। संस्था के संयोजक अखौरी चन्द्रशेखर ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि सभी सांस्कृतिक विधाएं मनुष्य के संस्कार का परिष्कार कर उसमें मानवता के नैसर्गिक गुणों का विकास करती है। इस तरह मानवीय गुणों से संपन्न व्यक्ति परिवार समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी होता है। शालिग्राम सिंह अशांत ने नवोदित संस्था के निरंतर गतिशीलता पर बल दिया। गजलकार सीताराम सिंह ने नवीन संस्था के दीर्घ जीवन की कामना करते हुए इसे जन उपयोगी बतलाया।
आशुतोष कुमार सिंह ने सत्कृति साहित्य के शुभारंभ पर हर्ष व्यक्त करते हुए जनपद के साहित्य के लिए उपयोगी कहा। कवयित्री साधना कृष्ण अनिल कुमार डाॅ वीरमणि राय सुधा वर्मा उमेश कुमार निराला इत्यादि ने संस्था के उज्जवल भविष्य की कामना की।
कविवर शालिग्राम सिंह अशांत ने पुष्पमाला और अंगवस्त्र प्रदान कर सीताराम सिंह और आशुतोष कुमार सिंह को सम्मानित किया। सम्मान के अगले चरण में सत्कृति साहित्य के द्वारा साहित्यकार शालिग्राम सिंह अशांत जी को पुष्पमाला अंगवस्त्र प्रतीक-चिन्ह और सम्मान-पत्र समर्पित कर सम्मानित किया गया।
आयोजन के दूसरे सत्र में कवि-गोष्ठी का आयोजन हुआ। काव्य-पाठ सत्र का संचालन उमेश कुमार निराला ने किया। साधना कृष्ण की गजल रब मुझे कैसा मुकद्दर दे दिया,खूबसूरत दिल भी अन्दर दे दिया पर खूब तालियाँ बजी। सीताराम सिंह की गजल हम जफा न कर सके , वह वफा न कर सकी दिल छू लिया। आशुतोष सिंह ने बदरा से निवेदन किया उमड़ घुमड़ घन बरसो,बरसो रे घन बरसो। डाॅ अशोक कुमार सिंह ने आधुनिक रिश्तों पर व्यंग करते हुए कहा - बहु से चाय मांगता बहु मांगती टैक्स, बेटा है रिलैक्स। उमेश कुमार निराला ने जीवन के यथार्थ को चित्रित करते हुए कहा सुख दुख जीवन का साथी है आती है और जाती है। डाॅ वीरमणि राय ने जीवन-क्रम को परिभाषित किया, धरा पर लगा हुआ है आना और जाना। अनिल कुमार ने पता नहीं कुछ कहने वाले दिल के कितने अच्छे हैं प्रस्तुत किया। अखौरी चन्द्रशेखर ने बज्जिका गजल पलक झूकाब न, दिन में रात हो जाई का सस्वर पाठ किया। विजय कुमार सिंह ने शीतल मंद समीर चले बगिया में कलियां मुस्काई मधुर गीत प्रस्तुत किया।अध्यक्षीय काव्य-पाठ में शालिग्राम सिंह अशांत ने प्रस्तुत किया हमतो आजाद परिन्दे हैं, घर-वार नही करते।
पत्रकार कौशल किशोर सिंह विपिन कुमार सिंह प्रियंका देवी लालजी झा तारा झा इत्यादि की उपस्थिति रही
धन्यवाद ज्ञापन रंगकर्मी सुधा वर्मा ने किया ।