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Pranic Science.

प्राण विज्ञान।
"प्राणवायु के नाम और स्वर ज्ञान"
योगाचार्य सत्यवीर सिंह मुनि।
हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे शरीर में जो क्रिया संचालित होती है, वह हमारा प्राण है, प्राण ही हमारे जीवन का आधार है। शरीर में प्राण नाड़ियों में प्रवाहित होता है। प्राण के साथ प्राणवायु चलती है। शरीर में प्राणवायु के शरीर में अलग अलग स्थानों पर अलग अलग नाम है, जैसे हृदय में प्राण, गुदा में अपान, नाभि में समान, कण्ठ में उदान और सम्पूर्ण शरीर में व्यान व्याप्त रहता है। इन पांच प्राणवायु के अतिरिक्त पांच उप प्राणवायु भी है, जो निम्न प्रकार हैं। डकार की वायु को नाग कहा जाता है, नेत्रों के पलकों को खोलने और बन्द करने वाली वायु कूर्म है, छीक का कारण कृकल वायु है, और जॅंभाई का कारण देवदत्त नामक वायु है।
हमारे शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियाँ है, उन बहत्तर हजार नाड़ियों को शरीर की तीन प्रमुख नाड़ियाँ कंट्रोल करती हैं। शरीर की तीन प्रमुख नाड़ियाँ इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना है। हमारा प्राण इन्हीं तीन नाड़ियों के माध्यम से बहत्तर हजार नाड़ियों में जाकर शरीर को पुष्ट बनाता है। यदि नाड़ियों में प्राण का संचरण सही प्रकार से नहीं होता है तो शरीर रोगी और निर्बल हो जाता है।
प्राण किस नाड़ी में प्रवाहित हो रहा है यह जानने के लिए ही स्वर साधना की जाती है। जब प्राण इड़ा अर्थात बाएं नासारन्ध्र में प्रवाहित होता है तो उसे चन्द्र स्वर कहा जाता है, शरीर पर चन्द्र स्वर का प्रभाव शीतल होता है। जब प्राण पिंगला अर्थात दाएं नासारन्ध्र में प्रवाहित होता है तो उसे सूर्य स्वर कहा जाता है, सूर्य स्वर का प्रभाव शरीर पर गर्म होता है। जब प्राण दोनों नासारन्ध्र में एक साथ प्रवाहित होता प्रतीत होता है तो वह सुषुम्ना में प्रवाहित माना जाता है, उसे शून्य स्वर कहते है। सुषुम्ना में प्राण कुछ ही सेकण्ड के लिए प्रवाहित होता है, ध्यान साधना में शून्य स्वर के आने और उसका उपयोग कर आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। प्राण नाड़ियों में बिना अवरोध के संचालित हो इसीलिए प्राणायामों द्वारा नाड़ियों का शोधन किया जाता है। इड़ा और पिंगला में प्राण क्रमशः 60 से 90 मिनट तक प्रवाहित होता है।
प्राण विज्ञान के अनुसार इड़ा और पिंगला में प्राण प्रवाहित होने पर कौन से कार्य करने चाहिए और कौन से नहीं यह बड़े महत्व का विषय है इस पर हमारा स्वास्थ्य और शौभाग्य निर्भर करता है। हमारा शरीर पांच तत्वों आकाश, वायु, अग्नि,जल और पृथ्वी तत्वों से मिलकर बना है। प्राण में हमेशा तत्व प्रवाहित होते रहते हैं। इन तत्वों का ज्ञान प्राणवायु की चाल एवं लम्बाई से किया जाता है। शरीर में जिस तत्व की कमी होती है उसकी पूर्ति तत्व साधना से की जाती है । इसके सभी के बारे में अगले आने वाले लेखों में विस्तृत चर्चा होगी।

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