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डॉ. संतोष आनन्द मिश्रा की पुस्तक "विरासत-ए-बिहार" की समीक्षा


डॉ. संतोष आनन्द मिश्रा, एक प्रतिष्ठित इतिहासकार, की नवीनतम कृति "विरासत-ए-बिहार" बिहार की समृद्ध और बहुआयामी ऐतिहासिक धरोहर पर एक गहन और व्यापक दृष्टि डालती है। यह पुस्तक न केवल बिहार के गौरवशाली अतीत को उजागर करती है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास यात्रा का भी सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत करती है। "विरासत-ए-बिहार" इतिहास के विद्वानों, शोधकर्ताओं और बिहार की विरासत में रुचि रखने वाले आम पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण और पठनीय कृति है।

पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह प्राचीन काल से लेकर आधुनिक बिहार तक के इतिहास को एक सिलसिलेवार और आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करती है। डॉ. मिश्रा ने पुरातात्विक खोजों, साहित्यिक स्रोतों, अभिलेखों और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों का कुशलतापूर्वक उपयोग करते हुए बिहार के विभिन्न युगों की जीवंत तस्वीर खींची है। उन्होंने मौर्य साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य और पाल साम्राज्य जैसे शक्तिशाली राजवंशों के उदय और पतन, उनके प्रशासन, कला, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में योगदान को विस्तार से वर्णित किया है।

"विरासत-ए-बिहार" केवल राजनीतिक इतिहास तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह बिहार की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डालती है। पुस्तक में बिहार के महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्रों - बोधगया, नालंदा, विक्रमशिला आदि - का विस्तृत वर्णन मिलता है, जो प्राचीन भारत में ज्ञान और आध्यात्मिकता के प्रमुख केंद्र थे। डॉ. मिश्रा ने इन स्थलों के ऐतिहासिक महत्व, उनकी वास्तुकला और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।

इसके अतिरिक्त, पुस्तक बिहार की लोक कला, साहित्य, संगीत और त्योहारों की समृद्ध परंपरा पर भी ध्यान केंद्रित करती है। डॉ. मिश्रा ने विभिन्न लोक कला रूपों, जैसे मधुबनी पेंटिंग, मंजूषा कला, और विभिन्न लोक नृत्यों का जीवंत चित्रण किया है। उन्होंने विद्यापति जैसे महान कवियों और लेखकों के योगदान को भी रेखांकित किया है, जिन्होंने अपनी रचनाओं से बिहारी संस्कृति को समृद्ध किया।

"विरासत-ए-बिहार" बिहार के आर्थिक इतिहास पर भी महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। पुस्तक में कृषि, व्यापार और वाणिज्य के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया गया है, जो प्राचीन और मध्यकालीन बिहार की अर्थव्यवस्था के आधार थे। डॉ. मिश्रा ने यह भी दर्शाया है कि कैसे बिहार ने विभिन्न कालखंडों में भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पुस्तक की भाषा सरल, सुगम और प्रवाहमयी है, जो जटिल ऐतिहासिक तथ्यों को भी आसानी से समझने योग्य बनाती है। डॉ. मिश्रा ने तथ्यात्मक सटीकता पर विशेष ध्यान दिया है, और उन्होंने अपनी बात को प्रामाणिक बनाने के लिए व्यापक संदर्भ सूची और परिशिष्ट भी प्रदान किए हैं। पुस्तक में उपयुक्त स्थानों पर ऐतिहासिक स्थलों और कलाकृतियों की तस्वीरें भी शामिल की गई हैं, जो पाठकों के अनुभव को और अधिक समृद्ध करती हैं।

हालांकि, कुछ क्षेत्रों में पुस्तक को और अधिक विस्तृत किया जा सकता था। उदाहरण के लिए, आधुनिक बिहार के सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों पर थोड़ा और अधिक ध्यान दिया जा सकता था। इसके अलावा, कुछ विशिष्ट समुदायों और उनकी ऐतिहासिक भूमिकाओं पर और अधिक प्रकाश डाला जा सकता था।
कुल मिलाकर, डॉ. संतोष आनन्द मिश्रा की पुस्तक "विरासत-ए-बिहार" बिहार के इतिहास और संस्कृति को समझने के लिए एक उत्कृष्ट कृति है। यह पुस्तक न केवल बिहार के गौरवशाली अतीत का एक व्यापक चित्र प्रस्तुत करती है, बल्कि इसकी वर्तमान स्थिति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार भी प्रदान करती है। यह निश्चित रूप से इतिहास के छात्रों, शोधकर्ताओं और बिहार के प्रति प्रेम रखने वाले सभी व्यक्तियों के लिए एक अनिवार्य पाठ्य सामग्री है। डॉ. मिश्रा ने इस महत्वपूर्ण कार्य के माध्यम से बिहार की समृद्ध विरासत को जीवंत बनाए रखने और उसे व्यापक दर्शकों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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