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मां के हाथ का भावनात्मक स्पर्श, मां की महिमा अपार, मां का कर्ज़ जीवन भर उतारा नहीं जा सकता


मां बच्चे का संबंध बहुत ही भावनात्मक होता है। बच्चा चाहे काला- गोरा, दुबला-मोटा या अपाहिज कैसा भी हो वह अपनी मां के कलेजे का टुकड़ा होता है। जिसे मां अपने सीने से लगा कर रखती है। दुनिया भर की मुसीबतें वह अकेले सह लेती है, पर बच्चे को गर्म हवा तक नहीं लगने देती। मां खुद गीले में सोती है और बच्चे को सुखे में सुलाती है। बच्चा मां के पास गंदगी जैसे पेशाब व पोटी बिस्तर पर ही करता है फिर भी मां उसे साफ कर स्वच्छ बिस्तर पर लिटाती है। बच्चा भी यह जानता है, समझता है कि दुनिया में कोई भी उस पर हंस ले या उसका मजाक उड़ा ले पर मां कभी भी उसका उपहास नहीं करेगी। इसलिए मां तो मां होती है। मां की महिमा अपार होती है। उसके नेह और छत्रछाया में बच्चे को हर पल आत्मविश्वास मिलता है। इसके सहारे वह कुछ भी कर गुजरता है।

मां के हाथ का स्पर्श बच्चे के लिए रामबाण दवा होता है। बच्चा जब कहीं गिर जाता है या उसे चोट लग जाती है तो मां उसे सहला देती है तो वह अपनी चोट के दर्द को भूल जाता है। घर में जब अपने से किसी बड़े से डांट पड़ जाती है तो बच्चा रोते हुए अपनी मां के पास शिकायत करने आता है। तब मां सब पर गुस्सा करने का उसे आश्वासन देकर बहला देती है। उसका किसी दोस्त से यदि झगड़ा होता है और वह दुखी होकर घर आता है तब मां उन दोनों में प्यार से सुलह करवा देती है। स्कूल में टीचर से फटकार यदि लगती है तो बच्चा घर आकर अपनी मां की गोद में दुबक जाता है उसे लगता है की मां उसे बचा लेगी। मां उसके सिर पर जब अपना ममता भरा हाथ रखती है तो बच्चा कक्षा में हुए अपने तथाकथित अपमान को भूल जाता है। अपनी मां पर हर बच्चा आंख मूंदकर विश्वास करता है और सोचता है कि उसकी मां उसे हर मुश्किल से छुटकारा दिला देगी। इसी सोच में वह प्रसन्न हो जाता है अपने सारे दुख दर्द अपनी मां के साथ साझा करके सब दुःख अथवा परेशानियों को भूल जाता है और नवीन उत्साह से मस्त होकर नाचने लगता है।

इसे हम टच थेरेपी भी कह सकते हैं। बच्चे को कैसा भी कष्ट हो मां के स्पर्श मात्र से ही वह सब भूल जाता है। मां का प्यार से सर पर हाथ फेरना या गोद में लेकर सहला देना ही उसकी हर मर्ज की दवा बन जाता है। ईश्वर की कुदरत है की मां के साथ उसका संबंध सबसे अधिक होता है। वह 9 महीने तक माता के गर्भ में रहता है और उसी से ही पुष्ट होता है। वह सुरक्षा कवच जन्म के पहले ही माता द्वारा उसे मिलता है। यही कारण है कि वह अपने कार्य हर कार्य के लिए अपनी मां पर ही निर्भर रहता है। अपनी हर छोटी बड़ी जिद उसी के माध्यम से पूरी करने की कोशिश करता है। ऐसा नहीं है कि घर के अन्य सदस्यों उसे प्यार नहीं करते अथवा उसे अस्वस्थ नहीं करते वह उसकी सारी आवश्यकताओं को ध्यान भी रखते हैं उसके मन को बदलने के लिए वह मां की तरह लोरी भी सुनाते हैं और कहानी भी। उसे घूमाते फिराते भी हैं और उसकी जिद भी पूरी करते हैं इतना सब होने के बावजूद भी उसे मां की गोद ही चाहिए होती है।

इसका कारण स्पष्ट है की मां का स्पर्श उसका सबसे बड़ा सहारा होता है। बच्चे को घर के अन्य सदस्य यदि ना दिखे तो वह उनके बारे में पूछताछ करता है उन्हें ढूंढने का प्रयास करता है परन्तु यदि वह कहीं से खेल कर लौटा है अथवा स्कूल से अपने घर वापस आया है तो अपनी मां को सामने न पाने पर रोने लगता है। घर में चाहे सभी सदस्य विद्यमान हो और वह यह कदापि सहन नहीं कर सकता उसकी अपनी मां उसकी आंखों से पल भर के लिए भी ओझल हो जाए।

विद्वानों का मानना है की बच्चे की कोई गलत आदत छुड़ानी हो या उसे अच्छे संस्कार देने हो तो उसके सो जाने पर यदि मां ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए गलत आदत छोड़ने या अच्छे संस्कार अपनाने के लिए प्रेरित किया तो बच्चे पर उसे क्रिया का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

मां बच्चे का यह संबंध बहुत ही भावनात्मक होता है। बच्चा काला- गोरा, दुबला-मोटा अथवा अपाहिज कैसा भी हो वह अपनी मां के कलेजे का टुकड़ा होता है। जिसे वह अपने सीने से लगाकर रखती है। दुनिया भर की परेशानी वह अकेले ही सह लेती है पर मां बच्चे को गर्म हवा तक नहीं लगने देती। बच्चा भी यह जानता समझता है कि दुनिया में कोई उस पर हंस ले या उसका मजाक उड़ा ले पर मां कभी उसका उपहास नहीं करेगी इसलिए मां तो मां होती है उसके नेह और छत्रछाया में बच्चों को हर पल आत्मविश्वास मिलता है इसके सहारे वह कुछ भी कर गुजरता है।

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