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पंजाब सरकार द्वारा अन्य राज्यों में जल आपूर्ति पर प्रतिबंध और उसका पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

Piyush Soni (Punjab); जीवन का आधार है। यह न केवल मनुष्यों के लिए आवश्यक है, बल्कि संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ भी है। भारत के उत्तरी राज्यों, विशेष रूप से हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली, आंशिक रूप से पंजाब के जल स्रोतों पर निर्भर हैं। हाल ही में पंजाब सरकार द्वारा जल संकट का हवाला देते हुए दूसरे राज्यों में जल आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने का विचार सामने आया है। यह निर्णय न केवल राजनीतिक और सामाजिक विवादों को जन्म देगा, बल्कि इससे संबंधित राज्यों के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

जल किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नदियाँ, झीलें, तालाब और भूमिगत जल स्रोत जैव विविधता का पोषण करते हैं। जल की उपलब्धता के कारण ही वनस्पति, जीव-जंतु और मानवीय सभ्यताएँ फलती-फूलती हैं। जब जल प्रवाह को कृत्रिम रूप से रोका जाता है, तो इसका असर न केवल मानव समाज पर पड़ता है, बल्कि प्रकृति की हर कड़ी प्रभावित होती है।

पंजाब स्वयं एक गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। अत्यधिक धान उत्पादन और भूजल दोहन के कारण यहाँ के जल स्रोत तेजी से समाप्त हो रहे हैं। इसी के चलते सरकार ने अन्य राज्यों में जल भेजने की नीति की समीक्षा शुरू की है। सबसे बड़ा मुद्दा सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर परियोजना है, जिसे लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच वर्षों से विवाद चल रहा है।

जब एक राज्य अपने जल स्रोतों पर नियंत्रण करता है और उनके प्रवाह को रोकता है, तो अन्य राज्यों के पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो जाते हैं, क्योंकि वे उस पानी पर वर्षों से निर्भर रहे हैं।

अन्य राज्यों पर प्रभाव

(क) हरियाणा:

हरियाणा के कई जिलों में जल स्तर पहले ही बहुत नीचे जा चुका है। यदि पंजाब से जल आपूर्ति पूरी तरह बंद कर दी जाती है, तो वहाँ की सिंचाई व्यवस्था चरमरा जाएगी। इससे न केवल कृषि पर असर पड़ेगा, बल्कि भूजल रिचार्ज की प्रक्रिया भी धीमी हो जाएगी। इससे भूमि बंजर हो सकती है और जैव विविधता का विनाश हो सकता है।

(ख) राजस्थान:

राजस्थान जैसे शुष्क राज्य के कुछ भाग पंजाब के जल पर निर्भर हैं। जल की अनुपलब्धता से वहाँ के मरुस्थलीय क्षेत्रों में रेगिस्तान का फैलाव और तेज़ हो सकता है। इससे वहाँ के स्थानीय जीव-जंतु, पौधे और आदिवासी जनजातियाँ संकट में आ सकती हैं।

(ग) दिल्ली:

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को भी पंजाब के जल स्रोतों से आपूर्ति मिलती रही है। यदि यह बंद होती है तो जल संकट के कारण वायु प्रदूषण बढ़ेगा, हरियाली घटेगी और गर्मियों में पेयजल संकट चरम पर होगा। इससे मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।


पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन के संभावित परिणाम

1. जैव विविधता में कमी: जल स्रोतों के सूखने से जल पर निर्भर जीव-जंतुओं का जीवन संकट में पड़ जाएगा।


2. वनों का क्षरण: नदियों और नहरों से जुड़े वन क्षेत्रों में सूखापन बढ़ेगा, जिससे वनस्पति और जंगल की आग जैसी घटनाएँ बढ़ सकती हैं।


3. भूमि की उर्वरता में गिरावट: जल की अनुपलब्धता से मिट्टी की नमी कम होगी, जिससे कृषि योग्य भूमि बंजर बन सकती है।


4. स्थानीय जलवायु परिवर्तन: जलवायु पर जल की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जल की कमी से वातावरण में गर्मी बढ़ेगी और वर्षा चक्र प्रभावित होगा।


5. प्रवास (Migration): जल संकट के कारण ग्रामीण जनसंख्या शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर सकती है, जिससे शहरीकरण और प्रदूषण में वृद्धि होगी।


समाधान और विकल्प

पंजाब सरकार का चिंता करना उचित है, लेकिन एकतरफा जल आपूर्ति रोकने से समस्याएँ बढ़ेंगी। इसके बजाय निम्नलिखित समाधान अपनाए जा सकते हैं:

जल प्रबंधन की समन्वित नीति: सभी संबंधित राज्यों को साथ लाकर एक स्थायी और न्यायसंगत जल वितरण प्रणाली बनाई जानी चाहिए।

वर्षा जल संचयन: सभी राज्यों को वर्षा जल संग्रहण को अनिवार्य रूप से लागू करना चाहिए।

फसल चक्र में बदलाव: पंजाब को जल-गहन फसलों से हटकर कम जल की आवश्यकता वाली फसलों की ओर बढ़ना चाहिए।

आंतरराज्यीय जल परिषद: केंद्र सरकार के नेतृत्व में एक जल विवाद निवारण निकाय की स्थापना होनी चाहिए।

जल किसी एक राज्य की संपत्ति नहीं, बल्कि एक साझा प्राकृतिक संसाधन है। पंजाब सरकार द्वारा जल आपूर्ति पर पाबंदी से असमानता और पारिस्थितिक संकट उत्पन्न होगा। हमें यह समझना होगा कि जल को रोकना समाधान नहीं है, बल्कि सभी राज्यों को मिलकर जल संरक्षण, न्यायपूर्ण वितरण और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने की दिशा में कार्य करना चाहिए। एक सतत और समावेशी जल नीति ही भारत के भविष्य की सुरक्षा कर सकती है।

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