
देवभूमि उत्तराखंड में गंगोत्री-यमुनोत्री,केदारनाथ और आज रविवार को बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ चारों धामों के कपाट खुल गये हैं।
उत्तराखंड के प्रसिध्द तीर्थस्थल बद्रीनाथ धाम के कपाट आज से भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। चार धाम में से एक बद्रीनाथ धाम के कपाट वैदिक मंत्रोचारण और जय बद्री विशाल के उद्घोष के साथ विधि-विधान से आज रविवार सुबह 6 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। इसी के साथ अब चारों धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और अब बद्रीनाथ के पट माह के लिए खुल गए हैं। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु 6 माह निद्रा और 6 माह जागते हैं।
हेलीकॉप्टर से की गई फूलों की बारिश
मंदिर में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पहुंचे हैं। मंदिर को 40 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। कपाट खुलते ही हजारों भक्त दर्शन के लिए पहुंचे हैं। यहां भारत के अलग - अलग राज्यों के अलावा विदेशों से भी भक्त दर्शन करने पहुंचते। इस वर्ष सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। कपाट खुलते समय हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश की गई।
2 मई को खुले थे केदारनाथ के पट
3 मई को भगवान बद्रीविशाल की पालकी, आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी, कुबेर और उद्धव की उत्सव डोली धाम पहुंची थी। इससे पहले 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री-यमुनोत्री धाम और 2 मई को केदारनाथ धाम के कपाट खोले गए थे। अब 4 अप्रैल को बद्रीनाथ के कपाट खोले गए हैं।
फोन पर रहेगी पाबंदी
इस बार सुरक्षा के कारण बद्रीनाथ जाने वाले भक्तों के लिए नई गाइडलाइन्स जारी की गई है, जिसके अनुसार मंदिर परिसर के 30 मीटर के दायरे में मोबाइल फोन का इस्तेमाल वर्जित है। अगर कोई भक्त इस क्षेत्र फोन चलाते, रील या फोटो बीडियो शूट करते पकड़ा जाता है, तो उसका फोन जब्त हो जाएगा। साथ ही उसे पाँच हजार रुपए जुर्माना देना होगा।
क्या है बद्री नाम का रहस्य
पौराणिक कथा के अनुसार, माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को ठंड से बचाने के लिए बद्री (बेर) के पेड़ के नीचे आश्रय दिया था। यहीं से बद्री नाम प्रचलन में आया है। कथा यह है कि भगवान विष्णु बद्रीनाथ क्षेत्र में नर-नारायण के रूप में तपस्या करने आए थे। उन्होंने अलकनंदा नदी के किनारे कठोर तप किया। यहां कड़ाके की ठंड पड़ती थी। तब भगवान विष्णु खुले आसमान के नीचे बिना किसी आश्रय के ध्यान में लीन थे। तब मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को ठंड से बचाने के लिए बद्री (जंगली बेरी) के पेड़ का रूप धारण किया और भगवान विष्णु को आश्रय दिया। ताकि वह सर्दी और बर्फ से सुरक्षित रहें। इस बद्री वृक्ष की वजह से भगवान की तपस्या बिना किसी बाधा के चलती रही। जब भगवान विष्णु तपस्या से उठे तो मां लक्ष्मी के इस प्रेम और समर्पण से प्रसन्न हुए। उन्होंने इस स्थान का नाम बद्रीनाथ रखा। यहां बद्री मां लक्ष्मी के बद्री वृक्ष रूप और नाथ भगवान विष्णु का रूप है।
आपकी यात्रा मंगलमय रहें, शुभकामनाओं के साथ उत्तराखंड रुद्रप्रयाग जनपद से ताजवर बुटोला जिलाध्यक्ष एमा न्यूज़।