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सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृति आयु: एक विषय, एक विश्लेषण!

सरकारी कर्मचारी की सेवा निवृति आयु:एक विश्लेषण!

आए दिन प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृति की आयु बढ़ाने या न बढा़ने पर चर्चा आम होती जा रही है.यह विषय समझने योग्य और विश्लेषण का है.

वर्तमान समय में यदि देखा जाए तो वे कर्मचारी सेवानिवृत हो रहे हैं जो तीस पैंतीस वर्ष पूर्व सरकारी सेवा में आए थे,जाहिर सी बात है कि उनको काफी अनुभव भी होगा जिसका लाभ राज्य की सेवाओं में हितकर हो सकता है यदि सेवा निवृति की आयु बढ़ाने का फैसला लिया जाता है तो !

परंतु यदि मात्र यह मानकर कि ऐसा करने से आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है तो यह भी ध्यान में रखना होगा कि यदि एक वर्ष की आयु बढ़ाई जाए तो कितने रोज़गार के साधन और अवसर समाप्त हो रहे हैं, क्या कोई भी भर्ती प्रक्रिया संपन्न करवाने में वर्तमान हालातों में एक वर्ष में पूर्ण हो रही है और रोज़गार मिल रहा है?परंतु कुछ गिने चुने लोगों को सेवा विस्तार अवश्य मिलता आया है चाहे सरकार कोई भी हो!

यह भी गौर करना आवश्यक है कि चिकित्सा सुविधाओं और शारीरिक रुप से जागरूकता बढ़ने से मानव जीवन की जीवन प्रत्याशा भी बढ़ी है अर्थात मनुष्य काफी आयु सीमा तक कार्य करने में पूर्णत:समर्थ है और ऐसे में उनके ज्ञान और अनुभव का लाभ मिल सकता है इसमें कोई संदेह नहीं!

अगर बात करें युवा पीढी़ के भावी रोज़गार के अवसरों की तो यह सभी को मालूम है कि आज प्रतिस्पर्घा का दौर है आज से दो दशक पूर्व सरकारी नौकरी प्राप्त करने में और आज के समय में सरकारी नौकरी पाने में काफी अंतर है आज बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने और प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करते ही तीस से पैंतीस वर्ष की आयु आमतौर पर गुजर जाती है तो क्या उनका भी अधिकार नहीं है कि वे भी लगभग पच्चीस तीस वर्षोंं तक अपनी सेवाएं प्रदान करने का अवसर पा सकें.

अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यवहारिक पहलू यह भी है कि मात्र सरकारी कर्मचारियों में ही क्यों ऐसा प्रतीत होता है कि एक निर्धारित आयु सीमा तक ही उनकी कार्यक्षमता कायम रहतीहै क्या राजनीति के क्षेत्र में अस्सी पच्चासी वर्ष की आयु सीमा तक राजनीतिज्ञ सक्रिय रूप में कार्यरत नहीं रहा करते हैं?उनके कार्यक्षेत्र का दायरा तो एक सरकारी कर्मचारी से कहीं अधिक होता है. बड़े बड़े पदों पर तो पैंसठ वर्षोंं तक नियुक्ति आम होती है। न्यायिक व्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण दायित्व वाले पदों पर तथा विभिन्न प्रकार के आयोगों के पदों पर तो ऐसा कभी देखा नहीं जाता तो सिर्फ सरकारी कर्मचारी ही क्यों चर्चा का विषय?
समाज और सरकारी व्यवस्था में हर क्षेत्र में और धरातल पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और हर नीति को धरातल पर कार्यान्वयन करने वाले सरकारी कर्मचारी ही ऐसे विषयों के केन्द्र में क्यों?
समय के साथ साथ समाज के हर क्षेत्र में परिवर्तन आते हैं और व्यवस्था को उन सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर चलना और सोचने के तरीके में भी परिवर्तन अनिवार्य है। व्यवहारिक रूप से फलीभूत होने वाले मुद्दों पर गंभीरता से चिंतन मनन करना आवश्यक है .

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