
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश : डॉक्टरों को दिया जेनरिक दवा लिखने का आदेश ।।
दवा मात्र एक व्यवसाय नहीं है बल्कि जीवन रक्षक का एक साधन भी है । लेकिन दुर्भाग्य है आज ये व्यवसाय एक इंसान की जिंदगी से काफी बड़ा हो गया है । जिसमें दवा विनिर्माण कंपनी से लेकर डॉक्टर तक ने इस पेशे को बदनाम कर दिया है ।
हालिया माननीय सर्वोच्य न्यायालय ने एक तल्ख टिप्पणी की है जिसमें राजस्थान हाईकोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि डॉक्टरों को अत्यधिक या तर्कहीन ब्रांडेड दवा लिखने के लिए कथित तौर पर रिश्वत देने और महंगी दवाओं पर जोर देने के मुद्दे के स्थाई समाधान के लिए सरकार को बेहद अहम सुझाव भी दिया जाय ।
हालांकि जस्टिस संजय करोल , जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता के खंडपीठ ने मौखिक टिप्पणी की है उन्होंने कहा कि डॉक्टरों के लिए जेनरिक दवा लिखने की वैधानिक आदेश जारी की जाय तो यह समस्या हल हो जाएगी ।
हालांकि जेनरिक दवा बनाम ब्रांडेड कंपनियों के दवा का मुद्दा पूरे विश्व में है । आस्ट्रेलिया में जेनरिक दवा तभी बेची जा सकती है जब ब्रांडेड दवा की तरह काम करती हो ।
न्यायालय और सरकार के आदेश के बाद भी डॉक्टर अपने पुर्जे पे दवा का कंपोजिशन ना लिख कर ब्रांड का नाम लिखते हैं । इसका एक कारण ये भी है कि भारत में MBBS आज भी कम है जिस वजह से बिहार जैसे प्रदेश के गांव में ग्रामीण चिकित्सक मरीज का इलाज करते हैं और उनको दवा के कम्पोजिशन का उतना ज्ञान भी नहीं होता ये गंभीर समस्या है उनको प्रशिक्षित करने की जरूरत है ।
आदेश के अनुसार किसी भी ब्रांड की कंपनी डॉक्टरों को प्रलोभन के तौर पर टूर या कीमती सामनों का ऑफर नहीं कर सकती हैं ।
सत्ता में बैठे लोगों से ब्रांडेड दवा कंपनियों के सांठ गांठ की वजह से कठोर कानून बनाना कठिन साबित हो रहा है ।
इसमें सबसे अच्छी बात ये है कि ब्रांडेड दवा की तुलना में जेनरिक दवा की कीमत आधे से भी कम , किसी किसी दवा में तो ब्रांडेड दवा की तुलना में जेनरिक दवा की कीमत 90% तक कम है ।
अब वक्त आ गया है जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय , केंद्र की सरकार , इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और राज्य सरकारें संयुक्त रूप से नियमावली बनावें और नियम तोड़ने पर कठोर से कठोर सजा का प्रावधान हो । ये जनहित में कल्याणकारी होगा ।
इसका निदान ये हो सकता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय जनहित को ध्यान में रखते हुए कठोर आदेश जारी करें और दूसरा जन जागरण के द्वारा जेनरिक दवा को बढ़ावा मिल सके ।
मनीष सिंह
पटोरी