
"शादी के बाद मानसिक उत्पीड़न से जूझते पुरुष: बढ़ते आत्महत्या के मामले चिंताजनक"
रिपोर्ट प्रस्तुति: एडवोकेट सुधाकर कुमार, पटना उच्च न्यायालय
भारत में पुरुषों के आत्महत्या के मामलों में एक नई सामाजिक विडंबना सामने आ रही है — शादी के बाद मानसिक उत्पीड़न (Mental Harassment)। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, हर साल हजारों पुरुष शादी के बाद अवसाद, पारिवारिक दबाव और झूठे मुकदमों के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। यह न केवल एक मानवाधिकार का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय दंड व्यवस्था और समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
प्रमुख घटनाएं :
1. 2024 में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में, एक 32 वर्षीय इंजीनियर ने आत्महत्या कर ली — उसने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि “मेरी पत्नी और ससुराल वालों ने झूठे केस और मानसिक टॉर्चर से मुझे बर्बाद कर दिया।”
2. बिहार के मुजफ्फरपुर में, एक बैंक कर्मचारी ने आत्महत्या की — पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा, दहेज और PWDVA एक्ट के झूठे केस से परेशान होकर।
आधुनिक कानूनी पृष्ठभूमि (New Laws in Force):
2023 में संसद द्वारा पारित भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत कई प्रावधान प्रभाव में आ गए हैं, जो इस प्रकार हैं:
प्रासंगिक धाराएं:
BNS धारा 85 – झूठे आरोपों में फंसाने पर दंडनियता का प्रावधान
BNS धारा 69(2) – मानसिक उत्पीड़न भी अपराध की परिभाषा में आता है
BNSS धारा 173(2) – तेजी से जांच व निष्पादन के लिए समयबद्ध प्रक्रिया
BNS धारा 109 – आत्महत्या के लिए उकसाने वालों के खिलाफ कठोर सजा का प्रावधान
मुख्य कारण :
1. झूठे 498A और PWDVA मामले
2. दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों का दुरुपयोग
3. पत्नी द्वारा परिवार से अलग करने का दबाव
4. पुरुषों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
5. 'Only women are victims' सोच
समाधान बिंदु :
1. कानूनी जागरूकता अभियान:
प्रत्येक युवक को विवाह से पूर्व BNS और BNSS की धाराओं की जानकारी दी जाए।
2. Self Protection Clause in Marriage Contract:
विवाह पूर्व अनुबंध (Pre-Nuptial Agreement) की कानूनी मान्यता की दिशा में पहल हो।
3. Men's Commission की स्थापना:
महिला आयोग की तर्ज पर पुरुष आयोग का गठन हो, ताकि पुरुष भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकें।
4. मिथ्या केसों में कठोर दंड:
BNS धारा 85 के तहत तुरंत झूठे केस डालने वाली पत्नी और परिवार पर केस दर्ज हो।
5. Mental Health Helpline for Men:
राज्य स्तर पर पुरुषों के लिए 24x7 कानूनी और मानसिक परामर्श सेवाएं शुरू की जाएं।
6. Fast Track Court:
विवाह संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना।
7. Media Code of Neutrality:
मीडिया को निर्देश दिए जाएं कि वह बिना जांच पुरुषों को दोषी न दिखाए।
भारत के न्यायिक तंत्र को अब लैंगिक संतुलन की आवश्यकता है। यदि महिलाएं संरक्षित हैं, तो पुरुषों की सुरक्षा भी समान रूप से आवश्यक है। मानसिक उत्पीड़न और आत्महत्या के मामलों को 'पुरुष अधिकार' (Men's Rights) के परिप्रेक्ष्य में देखना आज की आवश्यकता है।
लेखक परिचय:
सुधाकर कुमार
अधिवक्ता, पटना उच्च न्यायालय
संस्थापक: Indian Law Guru | Gulkishan Advocates Chamber