
महाबोधी मंदिर प्रबंधन को लेकर आंदोलन का 100वां दिन
बोधगया (गया)
महाबोधी मंदिर के प्रबंधन को लेकर चल रहा आंदोलन मंगलवार को 100वें दिन में पहुंच गया। आंदोलन की मांग है कि बोधगया टेंपल एक्ट 1949 को रद्द किया जाए। आंदोलन का नेतृत्व ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम कर रही है। इसे महाबोधी मुक्ति विहार के द्वारा चलाया जा रहा है।
बोधगया वह स्थान है, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल है। हर साल लाखों विदेशी पर्यटक, बौद्ध श्रद्धालु और भिक्षु यहां आते हैं। महाबोधी मंदिर के गर्भगृह में विशेष पूजा होती है। बोधिवृक्ष के दर्शन और साधना के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
आंदोलन की शुरुआत महाबोधी मंदिर परिसर और बीटीएमसी गोलंबर से हुई थी। जिला प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद आंदोलन स्थल बदला गया। इसके बाद दोमुहान पर आंदोलन चला। वहां से हटाने के बाद अब निगमा बौद्ध मॉनेस्ट्री में आंदोलन जारी है।
आंदोलन का नेतृत्व कर रहे आकाश लामा ने कहा कि बोधगया टेंपल एक्ट 1949 में मंदिर प्रबंधन समिति बीटीएमसी का गठन होता है। इसमें 9 सदस्य होते हैं। इनमें 4 हिन्दू और 4 बौद्ध धर्म के अनुयायी होते हैं। अध्यक्ष के रूप में जिलाधिकारी होते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब मंदिर या मस्जिद के प्रबंधन में दूसरे धर्म के लोग नहीं होते, तो महाबोधी मंदिर में हिन्दू धर्म के लोगों को क्यों रखा गया है। यह सिर्फ बौद्ध धर्म का स्थल है। इसलिए इसका प्रबंधन बौद्धों के हाथ में होना चाहिए।
इस विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। कोर्ट ने 16 मई 2025 को हुई सुनवाई में बीटी एक्ट 1949 को रद्द करने से जुड़ी याचिकाओं की अंतिम सुनवाई 29 जुलाई 2025 को तय की है।
आंदोलन में देश के अलग-अलग राज्यों से बौद्ध भिक्षु शामिल हो रहे हैं। मंगलवार को भी आंदोलन लगातार 100वें दिन जारी रहा।