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शायरी "गुनाह में शामिल नहीं"

वो ख़फ़ा हैं हमसे कि हम उनकी बात सुनते नहीं। क्या ये गुनाह भी हमारा है के हम उनके गुनाह में शामिल नहीं हैं ।।
--असलम बाशा (A. B.)

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