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शायरी (Shayeri) "बेगुन्हा है हम"

हमको पता है शहर वाले गुनहगार समझते हैं हमको, हम जानते हैं की बेगुन्हा है हम, दे चुके जितनी बेहगुनाही देनी थी हमने, अब इसे जादा बेगानाही देने का कोई शोक नहीं। क्यो झुके उस जुल्म के लिए हम, जो हमने किया ही नहीं।
फ़िर भी अगर लोग देते हैं शहर छोड़ के जाने की सजा हमको। तो हमको कोई गम नहीं, जिस शहर को हमारी ज़रूरत नहीं, हमको भी उससे दूर जाने में कोई गम नहीं
--असलम बाशा (A. B.)

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