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कौन सुनता है गरीबों की सब सुनते हैं अमीरों की



*यह कहानी उन्नाव जिले की अचलगंज थाने के अंतर्गत की कहानी एक गरीब को इंदिरा गांधी के जमाने पर खेती का पट्टा मिला था उस समय तीन लोगों को पट्टा मिला था जिसमें जिसमें दो पट्टेदारों ने रखा और एक बेचकर चला गया जो बेच कर गया उसकी जमीन लगातार बिकती ही रही है और उसी में एक पट्टे में दलित मजबूर जिसके पास पैसे नाम की फूटी कौड़ी नहीं उसका भी उसी में है अब कहानी शुरू होती है जो एक हिस्सा बिक्री हुआ उसकी चौहद्दी कहीं और, और बनवा कहीं और रहा है जिसमें दीवानी का मुकदमा डाल दिया गया फिर उसी जमीन को गृह जनपद के सिपाही ने जमीन को खरीद लिया अब वह सिपाही जमीन पर जहां पर खरीद रखा है जो चौहद्दी है वहां पर अपना मकान न बनाकर उसे दलित के जगह पर बना रहा है। दलित के पास पैसे ना होने के कारण सब जगह शिकायती पत्र दिया लेकिन कहीं भी कार्य नहीं रुक पाया मैं नाम नहीं लिख रहा हूं इसलिए कि शायद अधिकारी इस बात को समझे सूत्रों ने बताया जिला अधिकारी से लेकर ऊपर पुलिस अधीक्षक तक शिकायती पत्र देने के बाद भी कहीं सुनवाई नहीं हुई आखिर सुनवाई क्यों नहीं हुई। क्योंकि गरीबों की सुनता कौन है वह बूढ़ा टिक टिक कर लाठी लेकर सभी जगह पहुंचा लेकिन किसी ने भी नहीं सुना आखिर क्यों सुन क्योंकि उसके पास इधर-उधर जाने का पैसा नहीं है जो अपनी जमीन को बचा सके आज दिल दुखी हुआ किसी भी अधिकारी ने यह जरूरत नहीं समझी की एक बार जांच कर लीजिए लेखपाल से लेकर कानून को तक गए उन्होंने सूत्रों के मुताबिक उसे दलित के ही पक्ष में लिखा की यह जमीन उसे दलित की है और बनवाने वाला गलत बनवा रहा है लेकिन सुनता कौन है वह वह चारों तरफ गया पर किसी ने नहीं सुना किसी ने भी अपनी खबर दो लाइन उसमें नहीं लिखी क्योंकि वह बेचारा सबसे मिल नहीं सकता था कहां गए वो लोग कहां गए जो दलितों के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं अगर है किसी में तो उसे दलित की जमीन बचाने में मदद करें अगर आप इस सूचना के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं तो कृपया पर्सनल पर मैसेज करें क्योंकि मेरे पास भी कई फोन आए कि आप इसे कुछ मत करें क्योंकि वहां कुछ होगा नहीं मेरा मन किया मेरा मन नहीं मान रहा था इसलिए मैंने लिखा अगर सहयोग सबक मिलेगा तो मैं खुलकर इस अन्याय से लड़ने की हिम्मत करूंगा।*

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