
पांडवों के प्रति लोगों की श्रद्धा का प्रतीक हिमाचल का पारंपरिक बाड़ीधार मेला।
जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश , अर्की उपमंडल में स्थित देवभूमि बाड़ीधार का अहम स्थान है। इस स्थान में होने वाला मेला पौराणिक है। बाड़ीधार मेला पांडवों के प्रति लोगों की श्रद्धा का प्रतीक है। बाड़ीधार मेले का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। इस कारण इसे पांच पांडवों का मेला भी कहा जाता है। यह मेला प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की संक्रांति को मनाया जाता है। सऱ्यांज नामक ग्राम की पहाड़ी पर बाड़ेश्वर महादेव का मंदिर है जहां यह मेला लगता है। अर्की तहसील के बाड़ी की धार इलाके में पांचों पांडव विराजते हैं जिन्हें यहां अलग-अलग नामों से पूजा जाता हैं। इसके पीछे एक कहानी यह है कि पांडव अज्ञातवास के दौरान शिवजी को ढूंढते यहां पर आए थे। जैसे ही उन्हें पता चला कि बाड़ी की धार पर्वत पर शिवजी की धूनी है, वैसे ही शिवजी के दर्शन की इच्छा लेकर पांडव यहां आए थे परन्तु उन्हें धूनी तो मिली पर शिवजी नहीं मिले। देवाज्ञा से उन्हें वहीं प्रतिष्ठित हो जाने का आदेश हुआ। आकाशवाणी हुई कि भविष्य में यह स्थान पांडवों में सबसे ज्येष्ठ युधिष्ठिर के नाम से जाना जाएगा और बाड़ी की धार के नाम से विख्यात होगा। इसके अलावा दूसरे भाइयों को भी आस पास अन्य स्थान मिले और वे उन स्थानों पर पूजे जाते हैं। एक किवदंति कर अनुसार ऐसा भी कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने भाइयों की हत्या के अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर आए थे। वे मोक्ष प्राप्ति के लिए भगवान शिव की खोज में गए थे। उन्हें "नारद" ने बताया था कि भगवान शिव इस पर्वतमाला की चोटी पर ध्यान में बैठे हैं। इस स्थान को जानने के बाद वे भगवान शिव से मिलने की योजना के साथ वहां गए। कहावत के अनुसार पांडव आठ दिनों तक चोटी के आसपास रहे और नौवें दिन वे भगवान शिव से मिलने गए। जैसे ही वे पहाड़ की चोटी पर पहुंचे, शिव "धूनी" छोड़कर भैंस के रूप में कुरुक्षेत्र में गायब हो गए। उसके बाद पांडवों ने यहां भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनवाया और हर साल इस धार के आसपास के लोग बड़े ढोल और अन्य स्थानीय संगीत वाद्ययंत्रों के साथ आठ दिनों तक यही सब करते हैं और नौवें दिन वे अपने पांच देवताओं "पांडवों" के साथ चोटी पर जाते हैं। स्थानीय कहावत के अनुसार पांडव इस स्थान पर दो बार आए थे।
बाड़ीधार अर्की से लगभग 26 किलोमीटर दूरी पर है। मान्यता के अनुसार,बाड़ीधार मेले में जो आता है, बाड़ा देव उसके मन की मुरादें पूरी करते हैं। यही कारण है श्रद्धालु दूर-दूर से इस मेले में आते हैं। मेले की पूर्व संध्या पर यहां जागरण होता है। ढोल-नगाड़ों के साथ पूज (पूजा) बाड़ी को रवाना होती है। हालांकि मेले वाले दिन यहां तीन पूजा होती हैं। पूजा से अभिप्राय यह है कि जब पांडवों की मूर्तियां भगवान शंकर से मिलन करवाने के लिए बाड़ी की ओर से जाती हैं, तो उसके पीछे श्रद्धालू ढोल-नगाड़ों के साथ बाड़ी के लिए प्रस्थान करते हैं। इसे पूज अथवा पूजा के नाम से पुकारा जाता है। रात को केवल दो ही पूजा बाड़ी के लिए प्रस्थान करती हैं। तीसरी पूजा रात के समय यहां पर शामिल नहीं होती है। इसका कारण यह है कि इस पूजा में लगभग पांच-पांच घंटे का पैदल रास्ता तय करना पड़ता है जो रात को संभव नहीं है। मेले में पांडवों को सम्मान देने के लिए विभिन्न प्रकार की धुनें बजाई जाती हैं जिसे बेल कहते हैं।
मेले की परंपरा कई वर्षो से चली आ रही है। सूत्रों के अनुसार, इस बार भी यह मेला 15 जून को बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। 14 जून की रात को जागरण का आयोजन किया जायेगा वहीं, 15 जून को मेले का शुभारंभ स्वास्थ्य मंत्री डा. राजीव सैजल बतौर मुख्यातिथि करेंगे। स्वास्थ्य मंत्री इस दिन ही पीएचसी सरयांज का शिलान्यास भी करेंगे।