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सांसों का विज्ञान: हर सांस में छिपा है जीवन का रहस्य

मनुष्य की जीवन-यात्रा का प्रारंभ और अंत दोनों ही श्वास से जुड़ा होता है। सांस लेना एक सामान्य जैविक क्रिया प्रतीत होती है, लेकिन वैज्ञानिक शोधों ने यह स्पष्ट किया है कि यह एक अत्यंत शक्तिशाली और बहुआयामी प्रक्रिया है—जो न केवल शरीर, बल्कि मन, मस्तिष्क और भावनाओं को भी गहराई से प्रभावित करती है।
संसार भर में श्वास के प्रभावों पर आधारित शोधपत्रों की वैज्ञानिक समीक्षा बताती है कि हमारी हर सांस जीवन की दिशा बदल सकती है।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के 2017 के शोध में यह प्रमाणित हुआ कि श्वास से मस्तिष्क की भावनात्मक प्रणाली पर नियंत्रण होता है।
सजग श्वास मस्तिष्क के अमिगडाला क्षेत्र की सक्रियता को नियंत्रित करती है, जिससे तनाव और चिंता में कमी आती है। यह अध्ययन ध्यान और प्राणायाम को वैज्ञानिक समर्थन देता है।
2016 स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध में पाया गया सांसो की गति भावनाओं को नियंत्रित करती है। मस्तिष्क में एक न्यूरोनल ‘पेसमेकर’ की खोज की गई जो सांसों की गति और भावनात्मक संतुलन के बीच सेतु का कार्य करता है। धीमी सांसें शांतचित्त बनाती हैं, जबकि तेज सांसें बेचैनी बढ़ा सकती हैं।
2018 के जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस के अनुसार नाक से ली गई सांसें मस्तिष्क के ओलफैक्ट्री वाल्व और हिप्पोकैम्पस को सक्रिय करती हैं, जिससे निर्णय लेने की क्षमता, स्मरण शक्ति और सजगता में वृद्धि होती है।
कोविड-19 काल में भारत की आई०सी०एम०आर० की रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ कि नियमित प्राणायाम करने वाले लोगों की रोग प्रतिरोधक प्रणाली अधिक सशक्त होती है। शरीर में टी-सेल्स और इम्युनोग्लोब्युलिन्स की मात्रा में बढ़ोतरी होती है।
एम्स दिल्ली की शोध के अनुसार 12 सप्ताह के नियमित कपालभाति अभ्यास के बाद प्रतिभागियों के मेटाबॉलिज्म, ब्लड शुगर और थायरॉइड स्तर में सकारात्मक बदलाव देखे गए।
यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन, मेडिसन के
8 सप्ताह के कार्यक्रम में चिंता, अवसाद और अनिद्रा जैसी समस्याओं में औसतन 60% तक की कमी पाई गई। यह मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई आशा की किरण बनकर उभरा।
टोक्यो विश्वविद्यालय में जापान की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति पर आधारित इस शोध में पाया गया कि नाभि केंद्र (हारा) पर ध्यान केंद्रित करके ली गई सांसें पैरा सिम्फैथेटिक नर्वस सिस्टम को सक्रिय करती हैं, जिससे हृदयगति और रक्तचाप संतुलित होते हैं।
ओस्लो विश्वविद्यालय में हुए शोध में ज्ञात हुआ कि श्वास की लय बदलकर चेतना की अवस्था में बदलाव होता है। इस शोध में EEG मापन के अध्ययन से यह सिद्ध हुआ कि श्वास की लय को नियंत्रित करके ध्यान, सृजनात्मकता और मानसिक स्पष्टता की उच्च अवस्थाओं तक पहुंचा जा सकता है।
हम्बोल्ट विश्वविद्यालय, जर्मनी के अध्ययन में यह पाया गया कि जो लोग अपनी सांसों के प्रति सजग रहते हैं, वे मानसिक रूप से अधिक स्थिर, धैर्यवान और आत्म-जागरूक होते हैं। यह ध्यान और साधना की परंपरा को वैज्ञानिक मान्यता देता है।
ये शोध स्पष्ट करते हैं कि सांस लेना केवल शरीर की आवश्यकता नहीं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की कुंजी है। यह आधुनिक विज्ञान और प्राचीन भारतीय योगशास्त्र के बीच अद्भुत संगम की पुष्टि है।
प्राणों के विज्ञान पर आधारित शिव श्वरोदय शास्त्र के अनुसार यदि हर व्यक्ति यदि प्रतिदिन कुछ समय अपनी सांसों के साथ सजगता से जुड़ने का अभ्यास करे, तो वह न केवल रोगों से दूर रह सकता है, बल्कि अधिक आनंदमय, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकता है।
स्वर विज्ञान के कुछ अनुभूत उपाय-
1- जो व्यक्ति मूत्र त्याग करते समय या जल पीते समय बायीं नासिका से श्वांस लेता है, तो उसकी किडनी जिंदगी में कभी भी खराब नहीं होती है। ऐसा करने के लिए मूत्र त्याग करते समय दाएं नासिका छिद्र को अंगूठे से बन्द कर लेना चाहिए। जहां तक सम्भव हो जल उस समय पीना चाहिए जब बायीं नासिका से श्वास चल रही हो।
2- जो व्यक्ति दायीं नासिका छिद्र से श्वास चलते समय भोजन करता है, उसे कभी भी अपच, गैस या बदहजमी की शिकायत नहीं होती है। भोजन करने से पूर्व कुछ समय सिर के नीचे हाथ रखकर बायीं करवट लेटने से दायां स्वर चलने लगता है।
3- रात्रि में सदैव बायीं करवट सोना चाहिए, ऐसा करने से गहरी नींद आती है। सवेरे शरीर तरोताजा और शक्ति से भरपूर रहता है।
4- यदि मल त्याग करते समय बाएं नासिका छिद्र को अंगूठे से बन्द कर लिया जाए तो कब्ज, बवासीर, भगन्दर जैसी बीमारियां नहीं होती है।
5- प्रातःकाल बिस्तर त्यागते समय पहले वही पैर जमीन पर रखें जिस नासिका छिद्र से श्वास चल रहा हो। ऐसा करने से आपका दिन सफल रहता है।
योगाचार्य सत्यवीर सिंह मुनि
सुआवाला-धामपुर-बिजनौर

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