
खुद को मानता था अपने आप को महान, वहम मनुष्य को खा लेता है
राजेश सोनी रीवा शहर
*वहम*
यह बात एक समय की है जिस पर एक आश्रम में कई शिष्य और विद्यार्थी और गुरुजी रहते थे यह आश्रम बहुत ही सुंदर बहुत ही मधुर और हरियाली से भरा हुआ पुष्पों से सजा हुआ यह आश्रम था यहां पर दूर-दूर से शिष्य गुरु जी से शिक्षा ग्रहण करने आते थे लेकिन इस आश्रम में एक शिष्य ऐसा था जिसे यह बहन हो गया था कि यह आश्रम की जितनी भी गतिविधियां जितनी भी सुविधा और जो भी यह आश्रम में काम हो रहे हैं वह सब मैं या मेरे द्वारा किए जाते हैं अगर मैं इस आशा में ना रहूं तो इस आश्रम में कुछ भी नहीं होगा वह सारे लोग भूखे मर जाएंगे मेरे बिना यहां पर कुछ भी नहीं हो पाएगा ऐसा करते शिष्य को गुरु जी रोज देखते और सुनते और बस मुस्कुराते और कुछ नहीं रहते और चले जाते लेकिन एक दिन गुरु जी ने सभी शिक्षकों को आश्रम प्रांगण में बुलाया और सबको वहां पर बैठाया और सभी से एक ऐसी वस्तु जो वहां पर गुरुजी ने पहले से रखी थी उसको देखने को कहा और सभी से पूछा यह किसके हसरे में टिका हुआ है वह वस्तु गुरु जी ने पहले से रखी थी वह जल से भरा पत्र एक मिट्टी का घड़ा था वह मिट्टी का घड़ा जो जल से भरा हुआ था उसे खड़े के नीचे एक छोटा सा कंकर गुरुजी ने रखा हुआ था और सभी को वह दिखा रहे थे कि और सभी शिष्यों से पूछ रहे थे कि यह घड़ा किस चीज में टिका हुआ है सभी शिष्यों ने जवाब में उसे छोटे से कंकड़ का उदाहरण दिया लेकिन उसमें वैसे सभी बैठा था जो प्रतिदिन यह कहता था कि जो मैं करता हूं वह कोई नहीं कर सकता इस आश्रम का सारा कार्य भर में देखता हूं अगर मैं यहां कुछ ना करूं तो सारे लोग भूखे मर जाएंगे वैसे सभी वहां बैठा हुआ था तब गुरु जी ने उसे शिष्य को अपने पास बुलाया और उसे शिष्य से कहा कि यह मेरा आदेश है कि इस मिट्टी के घड़े के नीचे जो कंकड़ रखा हुआ है उसे हटा दिया जाए तब शिष्य ने उसे कंकर को हटाने से पहले गुरु जी से कहा कि गुरु जी अगर मैं इस कंकर को हटाया तो वह मटका जो जल से भरा हुआ है वह गिर जाएगा और मटका टूट जाएगा तो तब गुरु जी ने उसे शिष्य से कहा की जैसा मैंने कहा है वैसा किया जाए वह मटका टूटेगा नहीं यह मेरी जवाबदारी है तब किसने उसे मिट्टी के घड़े के नीचे से दबे हुए कंकड़ को हटाया और उसे निकाल कर फेंक दिया लेकिन मिट्टी का घड़ा जैसे के तैसे वहां पर रखा था तब गुरु जी ने सभी शिशु को कहा यह कंकर को पूर्ण विश्वास था की इस मटके का भार वह थामे हुए हैं अगर वह उसे खड़े के के नीचे से हट जाएगा तो मटका टूट जाएगा लेकिन यह उसकी बहन था इस प्रकार जीवन में मनुष्य को अपने बल पर अपने धन पर अपने काम पर बहन होता है और वह यही कहता है कि जो है वह स्वयं है लेकिन नहीं ऐसा नहीं है जो भी है वह ईश्वर का है और ईश्वर का ही रहेगा हमें सिर्फ उसकी बहन होता है लेकिन वास्तविक में ईश्वर ही उसका असली स्वरूप और मूल रूप होता है