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योग....विश्व को भारतीय संस्कृति की अनमोल देन...

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: भारत का मानवता को योगदान.
21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष. .



आज योग न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिये वरदान साबित हो रहा है..भारतीय मनीषियों के चिंतन मनन और वैज्ञानिक सोच का परिणाम आज संपूर्ण विश्व में मानवता को जोड़ने का अद्भुत और अद्वितीय योगदान प्रदान कर रहा है.
योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता और 21 जून को अंत्तराष्ट्रीय योग दिवस की मान्यता मिलना, हमारे देश व संस्कृति के लिये गौरव का विषय है. .इस वर्ष का योग दिवस का थीम है…एक धरा:एक स्वास्थ्य.

मानव जीवन प्रकृति का अनमोल वरदान है और शरीर को स्वस्थ रखना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है। शरीर के माध्यम से ही धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अत: मानव का यह नैतिक कर्तव्य और उतरदायित्व भी है कि सृष्टि की इस अनमोल रचना को स्वस्थ व ऊर्जा वान बनाने का प्रयास करे।
वर्तमान समय में मानव अपनी व्यस्त दिनचर्या के कारण अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्यके प्रति जागरूक नहीं है परिणामस्वरूप वह कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक व्याधियों व विकारों से ग्रसित हो रहा है। जिससे उसकी कार्य क्षमता पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है।
मानव शरीर पंच महाभूतों से मिलकर बना है, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल। और यह ब्रहमाण्ड भी इन्ही पांच तत्वों से ही बना है। अत: यह दिव्य ब्रम्हांड और मानव शरीर अलग अलग नहीं बल्कि एक ही तत्व हैं।
अतः शरीर को इस ब्रह्माण्ड या प्रकृति से समन्वय रखकर स्वस्थ व ऊर्जा वान बनाया जा सकता है।
यह प्रकृति असीम ऊर्जा का भंडार है और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर के मानव अपने भीतर उसी असीम ऊर्जा का अनुभव कर सकता है।
योग जीवन जीने की कला है। शाब्दिक अर्थ के अनुसार योग का अर्थ जोड़ना है। योग आत्मा से परमात्मा को जोड़ने का माध्यम है। यह शरीर से मन को तथा वर्तमान समय में मानव जीवन को प्रकृति से जोड़ने का अद्वितीय मार्ग है।
वास्तव में योग की उत्पति भारत में ही हुई थी और वर्तमान समय में योग को वैश्विक स्तर पर मान्यता और पहचान मिली है 21 जून 2015 को प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व में मनाया गया. तब से योग की उपयोगिता और व्यवहारिकता निरंतर बढ़ रही है.
शास्त्रों में भी योग का उल्लेख और महत्व बताया गया है। श्री मदभगवत गीता में समत्व योग उच्यते, और योग: कर्मसु कौशलम् के रूप में व्याख्या की गई है अर्थात सुख दुःख में एक समान रहना योग है, और योग से कार्य में कुशलता आती है।
अधिकांश विवेचना में अष्टांग योग की व्याख्या की गई है जिसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग के आठ अंग माने गए हैं।

वर्तमान समय में मनुष्य की जीवन शैली में आए परिवर्तनों से और अप्राकृतिक जीवन शैली से अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक व्याधियों का आगमन हो रहा है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव की कार्यक्षमता और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बच्चों में छोटी आयु में ही आंखों में चश्मा, शारीरिक रूप से कमज़ोर होना, खाने की अच्छी आदतें विकसित न होना इत्यादि चिंता का विषय बनता जा रहा है।
वर्तमान परिस्थितियों में योग की उपयोगिता और व्यवहारिकता और भी अनिवार्य और प्रासंगिक हो गई है।
नियमित योगाभ्यास से हमारे शरीर की मासपेशियां लचीली होती हैं, सहनशीलता बढ़ती है, शरीर की सामान्य तंदरुस्ती बढती है और संपूर्ण शरीर का विकास होता है।
सामान्यतः योगासन, प्राणायाम और ध्यान का नियमित अभ्यास मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक विकास में लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आसनों में सूर्यनमस्कार का नियमित अभ्यास अत्यंत ही लाभकारी है। इससे स्वास्थ्य में सर्वांगीण सुधार होता है और ऊर्जा का स्तर बढ़ती है। सर्वांगासन और शीर्षासन से रक्त का संचार मस्तिष्क की ओर होता है जिससे मानसिक क्षमता में वृद्धि और मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है।हलासन , भुजंगासन, पश्चिमोतासन शवासन इत्यादि का अभ्यास बाल्यकाल से ही बच्चों के नियमित जीवन का अंग बनाया जाना चाहिए। ताकि बच्चों के स्वास्थ्य का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो सके।
प्राणायाम के नियमित अभ्यास से श्वास, प्रश्वास की गति को नियमानुसार नियंत्रित करके शरीर में प्राणवायु का समुचित संचार होता है जिससे ह्रदय, फेफड़े और सभी आंतरिक अंगों का समुचित व्यायाम होता है। प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर में प्रत्येक कोशिका तक रक्त के माध्यम से प्राणवायु का संचार होने से शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार और रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
गहरी श्वास प्रक्रिया का नियमित अभ्यास, भस्त्रिका प्राणायाम, अनुलोम विलोम और भ्रामरी प्राणायाम के नियमित अभ्यास का हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर चमत्कारी प्रभाव पड़ता है।
योग मानव को वर्तमान क्षण से जुड़े रहने का कौशल प्रदान करता है वर्तमान में जीना एक कुशल और सक्षम व्यक्तित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि मनुष्य अक्सर भूतकाल की स्मृतियों से या भविष्य के लिए भय और चिंता से ग्रसित रहता है जिससे उसके वर्तमान क्षण में एकाग्रता से जीवन जीने में बाधा उत्पन्न होती है
परिणामस्वरूप मानव की कार्यक्षमता और कार्यकुशलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ध्यानात्मक आसनों के अभ्यास जैसे पदमासन, सिद्धासन व सुखासन में ध्यान का अभ्यास करने से मानसिक क्षमता, स्मरण शक्ति और मानसिक एकाग्रता में वृद्धि होती है। वज्रासन के अभ्यास से पाचनशक्ति बढती है और जोडों के दर्द में आराम मिलता है।
वर्तमान समय में मनुष्यों में तनाव ,अवसाद और चिंता जैसे मानसिक रोग उत्पन्न हो रहें हैं, जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव शरीर में विभिन्न प्रकार के रोगों जैसे, रक्तचाप, मधुमेह इत्यादि रोगों को जन्म दे रहा है।
योग मनुष्य के शरीर और मन को एक दृष्टि से देखता है अर्थात शरीर और मन के स्वस्थ या अस्वस्थ होने पर एक दूसरे पर प्रभाव परिलक्षित होता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा योग को अपनाने से वैश्विक स्तर पर भारतीय परंपरा के अनमोल योगदान को और भी अधिक प्रोत्साहन और मान्यता मिली है।

योग का उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण करना है यह सांस्कृतिक जागरूकता और विविधता को बढ़ावा देने में अत्यंत सहायक है।।
योग हमें स्वस्थ और प्राकृतिक जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित कर के उचित आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य का पालन करके जीवन को शारीरिक और मानसिक रूप से उपयोगी बनाने के लिए प्रेरित करता है। वर्तमान पीढ़ी में सहनशीलता की कमी, चिड़चिड़ापन और मानसिक एकाग्रता की कमी में योग अत्यंत लाभकारी है।
योग जीवन जीने की कला और विज्ञान है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई है और वर्तमान समय में यह पूरे विश्व में फैल गया है जो कि हमारे देश के लिए गौरव की बात है।
योग के अद्वितीय महत्व को समझते हुए हमें संकल्प करना है कि हम योग को अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाएं और इसके प्रचार प्रसार के लिए प्रयास करें ताकि एक स्वस्थ समाज के निर्माण और समग्र विश्व के कल्याण की भावना को फलीभूत किया जा सके।

विक्रम वर्मा
प्रवक्ता अंग्रेजी
शिक्षा खंड गैहरा
जिला चम्बा हि.प्र.





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