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अभी और बारी बारिष के मिल रहे गांवो में प्राचीन मान्यता के शकुन शास्त्र के संकेत।

छबड़ा:भारतीय परंपरा और लोक मान्यताओं में चिड़ियों के धूल में स्नान करने को अक्सर बारिश आने का शकुन (संकेत) माना जाता है। खासकर,यह कहावत प्रचलित है:
*"अंडा ले चींटी चढ़े,चिरिया न्हावे घूर, तो बरखा आवे भरपूर।*"
(जब चींटियाँ अंडे लेकर ऊपर चढ़ने लगें और चिड़िया धूल में नहाए, तो समझिए भरपूर बारिश होगी।)क्षेत्र के गांवों में अभी यह शकुन देखने को मिल रहे है।इस मान्यता के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी बताए जाते हैं।
*आर्द्रता*: ऐसा माना जाता है कि जब वायुमंडल में आर्द्रता बढ़ती है, तो पक्षियों के पंखों पर अतिरिक्त नमी या तेल जमा हो जाता है।धूल स्नान करने से उन्हें इस अतिरिक्त तेल और गंदगी से छुटकारा पाने में मदद मिलती है,जिससे उनके पंख हल्के और उड़ने के लिए बेहतर होते हैं।बढ़ी हुई आर्द्रता अक्सर बारिश से पहले होती है।
*परजीवी निवारण*: धूल स्नान से पक्षियों को अपने पंखों में मौजूद छोटे-छोटे परजीवियों (जैसे जूँ या माइट्स) से भी छुटकारा पाने में मदद मिलती है।यह सिर्फ एक अंधविश्वास नहीं है,पक्षी प्रेमी शंकर लाल नागर,बल्कि सदियों से किए गए प्राकृतिक अवलोकन पर आधारित एक लोक-विज्ञान है।ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बड़े-बुजुर्ग चिड़ियों के इस व्यवहार को देखकर बारिश का अनुमान लगाते हैं।
संक्षेप में, चिड़ियों का धूल में नहाना, विशेष रूप से गौरैया जैसी छोटी चिड़ियों का, जल्द ही बारिश होने का एक शुभ संकेत माना जाता है।

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