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भारत में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था



भारत में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था देश के भविष्य के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्राथमिक शिक्षा, यानी कक्षा 1 से 5 तक, बच्चों के सर्वांगीण विकास, आधारभूत साक्षरता और सामाजिक कौशलों के विकास पर केंद्रित होती है।

प्राथमिक शिक्षा का महत्व

प्राथमिक शिक्षा एक बच्चे के जीवन में बुनियादी कौशलों — पढ़ना, लिखना, गणना करना — को विकसित करने में सहायक होती है। इस स्तर पर बच्चों में आत्मविश्वास, जिज्ञासा, और सीखने के प्रति रुचि उत्पन्न होती है, जो आगे की शिक्षा के लिए मजबूत आधार तैयार करती है।

सरकारी योजनाएँ

भारत सरकार ने प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे:

सर्व शिक्षा अभियान (SSA)— जिसका मुख्य उद्देश्य 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना है।
मिड-डे मील योजना — इस योजना के तहत बच्चों को पोषण युक्त भोजन प्रदान किया जाता है ताकि वे स्वस्थ रहें और नियमित रूप से स्कूल आएँ।
शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 — इस कानून के तहत सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना उनका मौलिक अधिकार है।

चुनौतियाँ

हालाँकि भारत में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधार हुए हैं, फिर भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी
ग्रामीण इलाकों में स्कूलों की कमी
गरीबी और सामाजिक असमानता के कारण बच्चों का स्कूल छोड़ना
डिजिटल शिक्षा से जुड़ी आधारभूत संरचना की कमी

सुधार के प्रयास

हाल के वर्षों में सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और समुदायों ने मिलकर शिक्षा के स्तर को सुधारने के प्रयास किए हैं। नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत प्राथमिक शिक्षा में खेल आधारित शिक्षण, स्थानीय भाषा में शिक्षा देने, और रचनात्मक कौशल पर जोर दिया गया है।

निष्कर्ष

भारत में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। बच्चों के जीवन में इस स्तर पर किए गए निवेश से एक सक्षम, शिक्षित और जागरूक नागरिक तैयार होता है। चुनौतियों से निपटते हुए यदि प्राथमिक शिक्षा में सुधार किया जाए तो भारत एक सशक्त और शिक्षित राष्ट्र के रूप में विश्व में अपनी पहचान बना सकता है।



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