
पांचों कोशों को निर्विकार बनाती है, चक्रभेदन साधना।
अखिल भूमण्लीय सर्व शिरोमणि मुनि समाज के संस्थापक आदि योगेश्वर मुनीश्वर सद्गुरुदेव शिव मुनि जी द्वारा प्रणीत चक्रभेदन साधना एक मात्र ऐसी साधना है जो पंच कोशों को निर्विकार बनाती है। हमारी आत्मा, हमारा निज या हमारी शुद्ध चेतना जिसे सच्चा ईश्वर कहते हैं, ने स्वयं को पांच तलों (कोशों) के भीतर सुरक्षित रखा है। ये पांच तल ऊपर से क्रमशः अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश हैं। मय का अर्थ होता है बना हुआ। हमारा स्थूल शरीर भोजन अर्थात अन्न से बनता है इसलिए इसे अन्नमय कोश कहते हैं। स्थूल शरीर का सहीं प्रकार पोषण हो इसलिए सुपाच्य संतुलित आहार ग्रहण करने अनुशंसा करते हैं। अन्नमय कोश का साधन योगासन और क्रियायोग है। अन्नमय कोश के भीतर प्राणमय कोश होता है, प्राणमय कोश का कार्य शरीर के प्रत्येक अंग में प्राण ऊर्जा को नाड़ियों के माध्यम से पहुॅचाना है। प्राणमय कोश का साधन प्राणायाम है। प्राणमय कोश का कार्य अन्नमय कोश और मनोमय कोश के बीच सम्पर्क स्थापित करना भी है। प्राणमय कोश के भीतर मनोमय कोश होता है। यह कोश मन के विचारों के अनुरूप हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करता है। मनोमय कोश का साधन धारणा है। मनोमय कोश प्राणमय कोश और विज्ञानमय कोश के बीच सेतु का कार्य करता है।
मनोमय कोश के भीतर विज्ञानमय कोश होता है, विज्ञानमय कोश का साधन ध्यान है। ध्यान के माध्यम से विज्ञानमय कोश द्वारा जीवन को दिशा प्रदान की जाती है। विज्ञानमय कोश मनोमय कोश और आनंदमय कोश को आपस में जोड़ता है। विज्ञानमय कोश के भीतर आनंदमय कोश है। आनंदमय कोश में समाधि की अवस्था में ही प्रवेश किया जा सकता है। आनंदमय कोश का आनंद अनिर्वचनीय है। इसी को गूंगे के मीठें फल के स्वाद की संज्ञा दी गई है। आनंदमय कोश का साधन समाधि की अवस्था है।आनंदमय कोश के भीतर शुद्ध चेतन तत्व आत्मा का वास है। आत्मा से ही पंच तत्वों द्वारा ब्रह्माण्ड और शरीर की उत्पत्ति हुई है।
चक्रभेदन साधना द्वारा जब हम मन को शरीर के प्रत्येक जोड़, अंग और चक्रों में घुमाकर अत्यंत शक्तिशाली चक्रभेदन साधना करते हैं, तो चक्रभेदन साधना द्वारा क्रियायोग, शुद्ध प्रणायाम, ,धारणा, ध्यान का साधन एक साथ हो जाता है और साधक शीघ्र समाधि को प्राप्त कर लेता है। हमारे सभी पांचों कोश निर्विकार हो जाते हैं। हमको निरोग शरीर, आलौकिक आनंद की दिव्य अनुभूति प्राप्त होती है।
योगाचार्य सत्यवीर सिंह मुनि
सुआवाला-धामपुर-बिजनौर