
जशपुर: जब मिर्च बनी किसान की पीड़ा — "मंडी में नहीं बिके, तो नदी में बहा दिए"
रिपोर्ट – उदय साहू
सन्ना जशपुर
जशपुर की सन्ना तहसील, जिसे प्रदेश की "हरी मिर्च की राजधानी" कहा जाता है, आज किसानों के आंसुओं में डूबी हुई है। वह मिर्च, जो कभी इस क्षेत्र की आर्थिक रीढ़ मानी जाती थी, अब किसानों के लिए बोझ बन गई है। भाव इतनी बुरी तरह गिरे हैं कि किसानों ने हताश होकर अपनी उपज नदी में बहा दी।
❝किसानों की हरी कमाई अब हरी बर्बादी में बदल चुकी है❞
सन्ना क्षेत्र के पुलिया पर जब दर्जनों बोरी मिर्च को पिकअप से उठाकर नदी में फेंका गया, तो यह दृश्य केवल उपज की बर्बादी का नहीं, बल्कि उम्मीदों के डूबने का भी था। मंडियों में खरीददार नहीं, सरकारी दाम नहीं, और भंडारण की कोई सुविधा नहीं — ऐसे में किसान जाएं तो कहां जाएं?
भाव में भारी गिरावट, लागत भी नहीं निकल पा रही
जहां एक महीने पहले हरी मिर्च 15-20 रुपये किलो तक बिक रही थी, अब वहीं मिर्च 1-5 रुपये में भी नहीं बिक रही। रविवार को तो रेट 1 रुपये किलो तक पहुंच गया, जिससे किसानों की हताशा चरम पर पहुंच गई। सैकड़ों एकड़ में की गई खेती अब घाटे का सौदा बन गई है।
सन्ना की पहचान खतरे में
पंडरा पाठ, डूमर कोना, छिछली, हर्रा डीपा, नन्हेसर जैसे गांवों में सैकड़ों किसान सिर्फ मिर्च की खेती पर निर्भर हैं। यहां का मौसम और मिट्टी मिर्च के लिए अनुकूल है, लेकिन बाजार की मार झेलते-झेलते किसान अब दूसरी फसलें देखने को मजबूर हो रहे हैं।
प्रोसेसिंग यूनिट बनी शोपीस
करीब 8 साल पहले लोरो में एक करोड़ की लागत से बनाई गई मिर्च प्रोसेसिंग यूनिट आज भी ताले में जकड़ी हुई है। अगर यह चालू होती, तो मिर्च की गुणवत्ता बढ़ाकर बाजार में अच्छी कीमत मिल सकती थी। यह यूनिट किसानों की किस्मत बदल सकती थी, लेकिन अब यह एक "सफेद हाथी" साबित हो रही है।
किसानों की मांग — मुआवजा और बाजार की गारंटी
किसानों ने जिला प्रशासन से तत्काल सर्वे कर मुआवजा देने की मांग की है। इसके अलावा, कृषि विभाग से मिर्च को समर्थन मूल्य पर खरीदने और एक्सपोर्ट/प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करने की अपील की गई है।
अगर नहीं मिला समाधान तो क्या?
अगर यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में जशपुर की हरी मिर्च की खुशबू इतिहास बन सकती है। किसान मिर्च की खेती से मुंह मोड़ सकते हैं, और जशपुर का यह विशेष कृषि गौरव खो सकता है।
विशेष आग्रह:
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि किसानों की मेहनत की लाज रखें। जो मिर्च कभी इन गांवों की पहचान थी, वह अब घाटे का सौदा न बने। जरूरत है, नीति और नीयत दोनों के सुधरने की।
रिपोर्टिंग उदय साहू
सन्ना, जशपुर