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महाराष्ट्र के सोलापूर जिले के पंढरपूर मे आषाढी वारी के निमित्त महाराष्ट्र के सभी कोनसे दौड रही है दिंडीया और पालखीया ।

छे जुलै 2025 को आषाढ शुक्ल एकादशी का महाउत्सव महाराष्ट्र के पंढरपूर मे हो रहा है । महाराष्ट्र के सोलापूर जिला मे स्थित पंढरपूर मे भगवान विठ्ठल या पांडुरंग का 28युगो से वहा कटी पर हात रखकर खडे है । भगवान पांडुरंग ये भगवान महाविष्णू के अवतार स्वरूप है। महाराष्ट्र मे भगवान पांडुरंग के तमाम भक्त है । हर दिन उनकी पूजा अर्चा और नाम स्मरण किया जाता हैl क्योंकि ये जागृत देवस्थान होते हुए भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते है । महाराष्ट्र केसात कर्नाटक का भी भगवान पांडुरंग आस्था । मराठी संत साहित्य मे उनका एक प्रमाण है । उसमे कहा गया है कि 'कानडा ओ विठ्ठलु ' कर्ना टकु ऐसा वर्णन मिलता है । इसलिये सभी लोगों का आस्था का स्थान पंढरपूर है । मराठी मे ऐसा अभंग है । जेव्हा नव्हते चराचर ।तेव्हा होते पंढरपूर ॥ इसके अनुसार जब यह चराचरी भूतल पर अस्तित्व मे नही था । तभी वहा पंढरपूर स्थित था । इस महाउत्सव के कारण महाराष्ट्र के कोणे कोणे से पालखीयाँ और दिंडीयाँ. पंढरपूरकी और प्रस्थान करती है । भगवान विठ्ठल महाराष्ट्र के आराध्य दैवत है । उस दिन पंढरपूर मे चंद्रभागा नदी के वाळवंट मे सब और हरिनाम गजर और कीर्तनका महोत्सव होता है । इस दिन भगवान विष्णू निद्रा लेने के लिए जाते है । इसलिये इस एकादशी को शायनी एकादशी भी कहा जाता है । इस दिन सभी भक्तोगण उपवास करते है ।उपवास के कारण शरीर और मन की शुद्धी होती है । इसलिये शरीर मे स्थित काम, क्रोध , मोह,लोभ,दंभ,अहंकार हे विकार कम होते है और मन भक्ती की और चला जाता है । संतो ने कहा है अवघे गरजे पंढरपुर । चालला नामाचा गजर ॥ इस दिन पंढरपूर मे सब और हरिकीर्तन किया जाता है लाखो भक्त संतो के मुखो से भगवान पांडुरंग का गुणवर्णन और संकीर्तन सुनते है । और खुद को धन्य मानते है ।
भक्तगण महाराष्ट्र के हर कोनसे पैदल ही पालखीया और दिंड्या के साथ प्रवास करके काही महिने पैदल चलते है । और पंढरपूर जाकर चंद्रभागा तिर्थस्नानकरके धन्य हो जाते है । जा ते समय रास्ते मे गाव गाव अन्नदान किया जाता है । वारकरीयों का रहने का खाने का और नाश्ते की व्यवस्था की जाती है । आखिर शैनी एकादशी को सब लोग भगवान पांडुरंग दर्शन किया करते है । ऐसा कहा जाता है उस दिन भगवान पांडुरंग एकादशी से पौर्णिमा तक मंदिर के कलश पर ही स्थित रहते है क्योंकि सभी भक्तों को उनका दर्शन मिले । इसीलिए मंदिर के कलश का दर्शन ही प्रत्यक्ष भगवान पांडुरंग का दर्शन माना जाता है । और भक्तगण खुद को कृतार्थ होकर वापस अपने जीवनचरित्रार्थ पर जीवनि यापण करने के लिए घर वापस जाते है ।
महाराष्ट्र के संतो के बारे में कोई जाती धर्म नही देख सकते हर एक जाती और धर्म के संत होते है ।संत को कभी जाती और धर्म नही होता । मराठी भाषा मे कहावत है ।नदी का मूल और संतो का कुल नही होता । संत ही भगवान का स्वरूप होते है ।ऐतिहासिक कवी संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर,संत मुक्ताई,संत जनाई,संत गोरा कुंभार, संत नामदेव, संत नरहरी सोनार, संत चोखा, संत शांती ब्रह्म एकनाथ महाराज ये सब वारकरी संप्रदाय याने वैष्णव पंथ के संत है । उनके साथ महाराष्ट्र के अहिल्यानगर जिले के दिघोल गाव के संत नाना बाबा गीते . ये बहुत बडे ऐतिहासिक संत हो गये है । अठराहावे शतक मे उन्होने शांती ब्रह्म एकनाथ महाराज की पादुकाये खुदके मस्तक पर पाटपर रखकर पैठण से लेकर पंढरपूर जाते थे ।और पंढरपूर से फिर पैठण जाते थे । ऊस पालखी का क्षणचित्र मे आप देख सकते है ।

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