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बड़े भाई ने दी छोटी उम्र के बीमार भाई को नई ज़िंदगी–भाईचारे का अनमोल तोहफ़ा

मुरादाबाद, 25 जून 2025: भाईचारे और चिकित्सा सफलता की मिसाल पेश करते हुए 46 वर्षीय बड़े भाई ने अपने 41 वर्षीय बीमार छोटे भाई जसराम को अपनी किडनी दान कर नई ज़िंदगी दी। जसराम एंड-स्टेज किडनी डिज़ीज़ से जूझ रहे थे। यह जीवनदायिनी ट्रांसप्लांट मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली के नेफ्रोलॉजी एवं किडनी ट्रांसप्लांट विभाग की एसोसिएट डायरेक्टर, डॉ. मनीषा दस्सी और उनकी मल्टीडिसिप्लिनरी टीम द्वारा सफलता पूर्वक किया गया।

41 वर्षीय जसराम को सबसे पहले 2023 की शुरुआत में मैक्स क्लिनिक, मुरादाबाद में क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (सीकेडी) का पता चला था। फरवरी 2024 में उनकी हालत बिगड़ने लगी और उन्हें कमजोरी, थकान, तेज़ वज़न गिरना और हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत के साथ मैक्स हॉस्पिटल वैशाली लाया गया। मुरादाबाद के एक निवासी, जिनका पहले डॉ. मनीषा दस्सी की देखरेख में सफल किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका था, की सलाह पर जसराम को डॉ. दस्सी के पास रेफर किया गया।

शुरुआत में दवाओं से इलाज किया गया, लेकिन उनकी किडनी की कार्यक्षमता लगातार गिरती रही और अंततः उन्हें डायलिसिस की ज़रूरत पड़ी। परिवार में कई संभावित डोनर की जांच की गई। मां स्वयं डोनर बनना चाहती थीं, लेकिन उनकी प्रारंभिक अवस्था की किडनी डिज़ीज़ सामने आई। पत्नी डायबिटीज़ के कारण डोनर नहीं बन सकीं। एक साल से ज़्यादा समय तक कई अन्य रिश्तेदारों की भी जांच हुई, पर कोई उपयुक्त डोनर नहीं मिला।

इस दौरान जसराम अपनी नौकरी गंवा बैठे और डायलिसिस पर निर्भर हो गए, जिससे परिवार पर मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक बोझ बढ़ता गया। भाई की हालत देख और अन्य डोनर परिवारों से प्रेरणा पाकर बड़े भाई ने साहसिक फैसला लिया और किडनी दान करने आगे आए।

इस मामले पर मैक्स हॉस्पिटल वैशाली लाया गया। मुरादाबाद के एक निवासी, जिनका पहले डॉ. मनीषा दस्सी ने कहा, “मल्टीपल क्रॉनिक बीमारियों जैसे कुपोषण, हार्ट डिस्फंक्शन, लिवर से जुड़ी समस्याओं और दौरे के इतिहास वाले मरीज़ में ट्रांसप्लांट करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए मल्टीडिसिप्लिनरी अप्रोच, लगातार डायलिसिस ऑप्टिमाइज़ेशन और सावधानीपूर्वक प्री और पोस्ट ऑपरेटिव मॉनिटरिंग की ज़रूरत होती है। रिसिपिएंट का ऑपरेशन ओपन सर्जरी से हुआ जबकि डोनर का लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से, जिसमें छोटे चीरे लगे और सिले खुद घुलने वाले थे। डोनर को पांचवे दिन और रिसिपिएंट को सातवें दिन अस्पताल से छुट्टी मिल गई। एक हफ्ते बाद रिसिपिएंट का डीजे स्टेंट भी डे-केयर बेसिस पर हटाया गया। आज दोनों स्वस्थ हैं और अपनी सामान्य ज़िंदगी जी रहे हैं।”

यह मामला न सिर्फ ऑर्गन फेलियर से जूझ रहे मरीजों और उनके परिवारों की भावनात्मक और शारीरिक मजबूती को दर्शाता है, बल्कि जीवित डोनर ट्रांसप्लांटेशन की जीवनदायिनी शक्ति का भी उदाहरण है।

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