
भारत को असली आज़ादी कब
भारत आजाद 1947 में हुआ। 26 नवम्बर 1949 को संविधान आत्म अर्पित किया। 26 जनवरी1950 से लागू हुआ। 78 वर्ष के वाद भी जातीय उन्माद बढ़ता ही जा रहा है। संविधान वाद मनुस्मृति वाद का जंग प्रकाष्ठा पर है। जिसपर सरकार चुप्पी साधे हुए हैं। सरकार की जुबान इस प्रकरण पर बंद है। इतनी बात सब समझ रहे हैं, मनुस्मृति अब स्वीकार करने को शुद्र तैयार नहीं है। मनुस्मृतिवाद संविधान से देश चलाने का विरोध कर रहा है। आर एस एस भागवत जी का बयानवाजी से कोई शायद अनभिज्ञ नहीं है। जाति ब्राह्मणो ने बनाया भागवत जी का कथन है। फिर जाति को कायम रखने वाले हैं कौन ?कभी संविधान बदलने की बात खुले जुवान से सुनते हैं। संविधान से फिर घृणा किसे है? संविधान में उन्हें दंडित करने का प्रावधान है या नहीं?जातीय उन्माद पहले पर्दे के अंदर होता था। आज खुले आम कर रहा है। क्या संविधान में उनके लिए कोई सजा है या नहीं? यदि है तो सरकार उस पर कानूनी शिकंजा क्यों नहीं कहती हैं? संविधान अम्बेडकर जी नहीं लिखे बीएन राव वगैरह-वगैरह उन्माद फैलाने वाले बोल रहा है।उनकी ही बात मान लेते हैं राव साहेब ही लिखा। फिर ये सब अधिकार तो सामान्य वर्ग के मानव ही दलित पिछड़े, महिलाओं को दिया तो सामान्य वर्ग के मनुस्मृतिवाद को तो पालन करना चाहिए। सामान्य वर्ग में संविधान वाद की तायदाद मेरी नज़र में है। फिर उनको समझाया भी जा सकता है। साधु संत तो बोलने में लगाम ही खोल लिया है। अंधविश्वास घर घर परोसा जा रहा है। दुनिया तर्क पर चलती है। बागेश्वर बाबा अनरूद्ध बाबा को कौन नहीं जानता। मुझे समझ नहीं आता जब मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं को प्रताड़ित कर धर्मान्तरण कराया जा रहा था,उस समय 56 करोड़ देवी-देवताओं कहा सोए थे।मान लिया सोया था, जागा भी होगा। उसके वाद तो शक्ति प्रदर्शन होना चाहिए था।
यदि मानव में मानवोचित गुण, करुणा, दया, मानवता, त्याग , क्षमा भाईचारा, अपनापन परोपकारी , भेद-भाव विहीन गुण न हो , तो
भला भगवान ऐसे मानव को शांति कैसे प्रदान करेंगे। सभी मरता है, स्वर्गिय जुड़ जाता है। नर्कीय लोक भी है ।वहां कौन जाता है , मरने के वाद किसी के नाम में नर्कीय लिखा नहीं देखा। अच्छा कर्म करो या बूरा स्वर्ग ही सब जाता है, फिर डर किस बात की। स्वर्ग में भी सुख सुविधा के लिए तोसक , तकिया,ओढ़ना बिछौना खैनी बीड़ी भेजा जाता है। फिर स्वर्ग में सुविधाजनक है कौन वस्तु।आज तक मेरा पूर्वज किसी ने स्वर्ग से टेलीफोन नहीं किया । मंत्र से बेजान में जान दे देने की प्रथा प्रचलित है। फिर मृत मानव को मंत्र से प्राण
क्यों नहीं डाला जाता है। यहां मंदिर जाने से भगवान अपवित्र हो जाता है, शुद्र के स्पर्श से अपवित्र हो जाता है, जातिय भेद भाव कायम रखना चाहता है, तो स्वर्ग में शुद्र को मनुस्मृति वाद रहने देंगे। इस अंधविश्वास को संविधान में जगह कहीं भी नहीं है। फिर बाजार में इतना अंधविश्वास फैलाने की छुट सरकार क्यों दे रखी है। खुद हमारे माननीय प्रधानमंत्री माता की मृत्यु पर बाल भी न छिलाए। कोई कर्म कांड की चर्चा मिडिया में नजर नहीं आया। फिर भी भगवान नाराज नहीं हुए।
देश के यशस्वी प्रधानमंत्री विदेश में भारतीय का नाम रोशन करने में कामयाब है।ये चिंतन का विषय है। देश रहेगा तब मानव रहेगा।
जागेश्वर मोची मधुबनी संवाददाता।ट