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गडचिरोली के गांवों में टॉवर खड़ा, लेकिन नेटवर्क गायब! – ग्रामीणों की उम्मीदों पर फिरा पानी

रिपोर्टर :शत्रू आतला


गडचिरोली, महाराष्ट्र – "डिजिटल इंडिया" के सपनों को साकार करने के नाम पर गडचिरोली जिले के कई गांवों में मोबाइल टॉवर खड़े तो कर दिए गए, लेकिन हकीकत यह है कि आज तक वहां ना नेटवर्क है, ना कव्हरेज। महीनों बीत गए, लेकिन टॉवर से एक बार भी स्थायी सिग्नल नहीं मिला। इससे ग्रामीणों में भारी आक्रोश है और अब वे सवाल उठा रहे हैं – “क्या ये टॉवर सिर्फ दिखावे के लिए लगाए गए थे?”
गांवों में टॉवर लगते ही लोगों को लगा था कि अब बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई आसान होगी, किसान मंडी भाव और सरकारी योजनाओं की जानकारी पा सकेंगे, और बेरोजगार युवा ऑनलाइन फॉर्म भर सकेंगे। लेकिन अफसोस, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मोबाइल में नेटवर्क अक्सर “नो सर्विस” ही दिखाता है, और इंटरनेट स्पीड इतनी धीमी है कि एक पेज खुलने में भी मिनटों लग जाते हैं।
“जिम्मेदार कौन?” – ग्रामीणों का सीधा सवाल
ग्रामीणों का कहना है कि यह सिर्फ तकनीकी लापरवाही नहीं, बल्कि गांव के विकास के साथ किया गया मजाक है। वे पूछ रहे हैं –
> “टॉवर तो खड़ा कर दिया, लेकिन चालू कब होगा? कौन देख रहा है इसका मेंटेनेंस? और क्या सरकार को यह पता है कि करोड़ों की लागत से लगे टॉवर सिर्फ खामोश खंभे बनकर खड़े हैं?”
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार पर सीधा असर
ग्रामीण युवाओं की ऑनलाइन पढ़ाई बाधित हो रही है। किसान डिजिटल कृषि सेवाओं से कटे हुए हैं। कई सरकारी सुविधाएं जैसे ऑनलाइन राशन कार्ड, आधार अपडेट, पेंशन आदि के लिए लोगों को शहरों तक जाना पड़ता है, सिर्फ इसीलिए क्योंकि गांव में नेटवर्क ही नहीं है।
सख्त कार्रवाई की मांग
ग्रामीणों ने प्रशासन और मोबाइल कंपनियों से मांग की है कि:
इन टॉवरों को जल्द से जल्द सक्रिय किया जाए।
नेटवर्क कव्हरेज की नियमित निगरानी हो।
खराब सेवा देने वाली कंपनियों पर दंडात्मक कार्रवाई हो।
यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो ग्रामीण आंदोलन का रास्ता अपनाने को मजबूर होंगे।
📌 यह सिर्फ गडचिरोली की नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण भारत की आवाज है। सरकार और कंपनियों को अब यह समझना होगा कि डिजिटल इंडिया का सपना सिर्फ शहरों से नहीं, गांवों से भी शुरू होता है।

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