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मोहर्रम का चाँद

मोहर्रम का चाँद निकलते ही हर तरफ से गूँजने लगी या हुसैन की सदायें।
हर धर्म का कैलेन्डर वर्ष खुशी से शुरू होता है लेकिन इस्लामी कैलेन्डर वर्ष गम से शुरू होता है मोहर्रम कोई त्योहार नहीं हैं बल्कि मोहर्रम में मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम व उनके 72साथियों की याद मनायी जाती है जिन्होंने इस्लाम और इंसानियत को बचाने के लिए अपनी जान की कुरबानी दी थी।मोहर्रम मजलूमो पर हो रहे जुल्म के खेलाफ एक आंदोलन है मोहर्रम अमन शान्ति भाई चारा आपसी मेल मोहब्बत का पैगाम देता है मोहर्रम सभी धर्मों को समान और सभी के सम्मान को बढ़ावा देता हैं हुसैन किसी एक धर्म के नहीं बल्कि इन्सानियत के मसीहा का नाम है। आज सारी दुनिया में मोहर्रम जैसा भारत देश में मनाया जाता है उस अकीदत और खुलूस से और जगह नहीं होता उसकी वजह यह है कि जब कर्बला के मैदान में यजीदी फौज ने हुसैन को घेर लिया तो हुसैन ने यजीदी फौज से कहा अगर तुम मुझे यहाँ नहीं रहने देना चाहते हो तो मुझे हिन्द जाने दो वहां इन्सानियत और मानवता है वहां के लोग मुझे प्यार करते हैं यही वजह है कि हुसैन की चाहत का देश भारत है जहां पर साल भर लोग मोहर्रम का इंतेजार करते हैं इसी लिए भारत की अजादारी प्रसिद्ध है।

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