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सरसींवा में "संरक्षण "की छाँव में फलफुल रहा अवैध शराब कारोबार, पुलिस-आबकारी की मिलीभगत से शासन को करोड़ो का नुकसान.....!

  सरसींवा थाना क्षेत्र एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार वजह है यहां फल-फूल रहा अवैध शराब कारोबार। अपनी जानकारी गुप्त रखने की सर्त पर ग्रामीणों ने आरोप लगते हुए कहा कि यह सारा कारोबार पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत से चल रहा है। क्षेत्र के कई गांवों में खुलेआम महुआ और देशी शराब की बिक्री हो रही है, लेकिन आज तक इन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। कुछ महीने पहले पिकरिपाली गांव के लोगों ने कलेक्टर जनदर्शन में शिकायत कर बताया था कि गांव में पुलिस के संरक्षण में शराब बिक रही है, लेकिन शिकायत के बावजूद प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह से मौन रहा। ऐसा प्रतीत होता है जैसे शिकायतें केवल औपचारिकता बनकर रह गई हैं। स्थानीय जानकारी के अनुसार, सरसींवा क्षेत्र में लगभग 300 से अधिक कोचीया सक्रिय हैं किसानी के समय यह धंधा और भी तेज हो जाता है। शराब की बिक्री न सिर्फ खुलेआम हो रही है, बल्कि कई जगहों पर गुंडागर्दी कर जबरदस्ती बेची जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि इस व्यापार के पीछे एक पूरा कमीशन सिस्टम काम करता है, जिसमें कई स्तरों पर पैसा बंटता है, तभी पुलिस और आबकारी विभाग की आंखें मूंद जाती हैं। आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2024-25 में जिलेभर में 712 मामले दर्ज किए गए हैं और 732 लोगों को जेल भेजा गया है। इनमें अकेले सरसींवा थाना क्षेत्र से 118 मामले दर्ज हुए हैं पुलिस इन सब पर कण्ट्रोल करने मे सक्षम नहीं है। आंकड़े यह जरूर बताते हैं कि पुलिस कार्रवाई कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि अवैध शराब का नेटवर्क दिन-ब-दिन और मजबूत होता जा रहा है। ग्रामीणों का दावा है कि कई ऐसे स्थान हैं जहां वर्षों से अवैध शराब का कारोबार चल रहा है, लेकिन आज तक वहां कोई मामला दर्ज नहीं हुआ। इससे साफ है कि कार्रवाई केवल दिखावे की होती है, असली माफिया तक हाथ नहीं पहुंचता। इस अवैध कारोबार से शासन को हर साल करोड़ों रुपये का राजस्व नुकसान हो रहा है। अनुमान के अनुसार, केवल सरसींवा थाना क्षेत्र से शासन को 10 से 15 करोड़ रुपये की सीधी हानि हो रही है। इसके अलावा, गांवों में शराबखोरी के कारण सामाजिक और स्वास्थ्य समस्याएं भी तेजी से बढ़ रही हैं। लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण सस्ती महुआ शराब पर निर्भर हैं, जो न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि आए दिन झगड़े और अपराधों को भी जन्म दे रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब हर कोई जानता है कि कहां और कैसे अवैध शराब बेची जा रही है, तो फिर पुलिस और आबकारी विभाग क्यों खामोश हैं? क्या ये विभाग खुद इस नेटवर्क का हिस्सा बन चुके हैं? यह मामला अब केवल शराब बेचने का नहीं, बल्कि शासन व्यवस्था की साख का है। यदि जिम्मेदार विभाग अब भी चुप रहे, तो यह चुप्पी भविष्य में भारी जनविरोध में बदल सकती है। यह खबर किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि उन सैकड़ों ग्रामीणों की आवाज़ है, जो हर दिन इस जहर को अपने आसपास पलते हुए देख रहे हैं। अगर किसी विभाग को इस पर आपत्ति है, तो पहले वह अपने भीतर झांके – क्योंकि जब सच्चाई सामने आती है, तो असहज वही होता है जो दोषी होता है।अब सवाल सिर्फ यह नहीं है कि शराब कौन बेच रहा है, सवाल यह है कि कौन बचा रहा है?

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