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भगवान जगन्नाथ

बड़ा आश्चर्य है कि भगवान बीमार पड़ जाते हैं,वह भी एक पखवाड़े के लिए।
हर वर्ष ओड़िसा के पुरी में होने वाली रथयात्रा से पहले एक ऐसा समय आता है,जब 15 दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और देवी सुभद्रा एकांतवास में चले जाते हैं।इस अवधि को “अनसर काल “ कहा जाता है।ये परंपरा सदियों से चली आ रही है लेकिन,सवाल यह है कि आख़िर ऐसा क्यों होता है और इस रहस्यमयी बीमारी के पीछे क्या मान्यताएँ हैं।
क्यों और कब हो जाते है भगवान बीमार…..।
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ का “ स्नान पूर्णिमा “ अनुष्ठान होता है।इस दिन भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और देवी सुभद्रा को मंदिर के बाहर सार्वजनिक रूप से 108 घड़े सुगंधित जल से महास्नान कराया जाता है।इस विशाल स्नान के बाद लोक मान्यता है कि भगवान को जुकाम और बुख़ार आ जाता है।उन्हें तेज ठंड लगती है और वे अस्वस्थ महसूस करने लगते हैं।भगवान जगन्नाथ,जिन्हें पुरी का अधिपति माना जाता है,हर साल इस अनुष्ठान से गुजरते हैं।जहां उन्हें बीमार माना जाता है।यह सुनकर कई लोगों को आश्चर्य भी होता है कि भला भगवान भी बीमार पड़ सकते हैं! वास्तव में इसके पीछे एक बहुत ही रोचक कथा जुड़ी हुई है।यह कथा है,भगवान जगन्नाथ और उनके अनन्य भक्त माधव दास की।
माधव दास और भगवान जगन्नाथ की कथा…..।
पुरी में एक महान भक्त माधव दास रहते थे।वे भगवान जगन्नाथ के प्रति अपनी असीम श्रद्धा व भक्ति के लिए जाने जाते थे।माधव दास अपना जीवन भगवान की सेवा और उन्हीं के प्रसाद पर व्यतीत करते व्यतीत करते थे।उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि भगवान को वे अपने आराध्य ही नहीं,बल्कि अपने सबसे प्रिय मित्र मानते थे।
एक बार माधव दास को बहुत तेज बुख़ार हो गई।उनकी हालत इतनी गंभीर हो गई कि वे ठीक से उठ भी नहीं पा रहे थे।ऐसे में उन्हें अपनी दैनिक दिनचर्या पूरी करने, यहाँ तक कि भगवान को भोग लगाने में भी कठिनाई होने लगी।उनकी देखभाल करने वाला कोई नही था।अतः अकेले वे बीमारी से जूझ रहे थे।भक्त की इस पीड़ा को देखकर भगवान जगन्नाथ विचलित हो गए।वे अपने भक्त की देखभाल के लिए एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर माधव दास के पास पहुँच गए।भगवान,माधव दास की सेवा करने लगे,उन्हें दवा देते और उनकी हर ज़रूरत का ख़्याल रखते।
जब माधव दास स्वस्थ हुए, तो उन्हें एहसास हुआ कि उनकी सेवा करने वाला कोई और नहीं,बल्कि स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं।वे भगवान की इस असीम कृपा को जानकर उनके प्रति प्रेम से अभिभूत हो गए।माधव दास ने भगवान से पूछा कि आपने मेरी सेवा क्यों की? आप तो ब्रह्मांड के स्वामी हैं।भगवान जगन्नाथ ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया,तुम मेरे भक्त हो,और जब मेरा कोई भक्त कष्ट में होता है,तो मैं उसे अकेला कैसे छोड़ सकता हूँ।तुम्हारी बीमारी को मैंने स्वयं अनुभव किया है,तुम कल से स्वस्थ हो जाओगे।सभी को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है।अभी तुम्हारी,बीमारी के 15 दिन और बाक़ी हैं,उसे मैंने अपने ऊपर ले लिया है।आश्चर्य की बात है कि उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी।उस दिन से यह परंपरा आज तक चली आ रही है और भगवान बीमार पड़ जाते हैं।उसके बाद वे 15 दिनों के लिए एकांतवास में चले जाते हैं।जिसे “अनासर “कहते हैं भगवान के ठीक होने के बाद “ नेनासर उत्सव मनाया जाता है,जिसे रथयात्रा कहते हैं।
क्या हमने कभी यह विचार किया है कि प्रत्येक वर्ष रथयात्रा के ठीक पहले भगवान स्वयं बीमार पड़ जाते हैं।उन्हें बुख़ार एवं सर्दी हो जाती है। बीमारी की इस हालत में उन्हें Quarantine किया जाता है,जिसे मंदिर की भाषा में “ अनासार “ कहा जाता है।भगवान को 14 दिन तक एकांतवास यानी Isolation में रखा जाता है।इस दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन बंद रहते हैं।भगवान को जड़ी बूटियों का पानी आहार में दिया जाता है,यानी Liquid diet ।यह परंपरा हज़ारों वर्ष से चली आ रही है।
कुछ लोग मानते हैं कि हिन्दू धर्म अंधविश्वास से भरा एक अवैज्ञानिक धर्म है।लेकिन जरा ध्यान से देखिए कोरोना के बाद पूरा विश्व 14 दिनों के lsolation & Quarantine को मानने लगा है,डॉक्टर भी यही बतलाते हैं।
आज जो हमें बताया या पढाया जा रहा है, वह हमारे पूर्वज हज़ारों साल पहले से जानते थे।
फिर क्यों ना गर्व हो,हमें अपने
हिंदू धर्म पर,अपनी संस्कृति और परंपराओं पर।

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